________________ आगम निबंधमाला इस सिद्धांत में शरीर की बात करी है और पूर्व सिद्धांत में पाँच भूत से चेतनत्व की उत्पत्ति मानी है अर्थात् पाँच भूत मिलने पर वे ही चैतन्यशक्ति संपन्न होकर चलने, बोलने आदि की क्रिया करने लग जाते हैं / इस सिद्धांत के अनुसार पुण्य-पाप कुछ नहीं होते / लोक-परलोक, शुभाशुभ कर्म फल नहीं होते, किंतु शरीर के विनाश के साथ आत्मा का विनाश हो जाता है / वह कहीं जाता नहीं और कोई फल भोगता नहीं है / राजप्रश्नीय सूत्र में इस सिद्धांत के पक्ष, विपक्ष की विस्तृत चर्चा है / इस मान्यता वालों का कहना है कि जगत में जो भी विचित्रता नजर आती है वह सब स्वभाव से होता है पूर्व कृत कर्म मानने की आवश्यकता नहीं है / यह एक प्रकार का नास्तिक दर्शन है / ऐसा मानने पर जगत में शुभ कर्म करने के प्रोत्साहन समाप्त हो जाते हैं / ' वास्तव में विचित्रता को स्वभाव कहने पर भी उस स्वभाव के पीछे कारण ढूंढा जाय तो पूर्वकृत कर्म स्वीकारना जरूरी होगा, उसके बिना संसार व्यवस्था भी नहीं चल सकती / एक साथ जन्मे दो बालकों में से एक रोता है एक नहीं, एक बीमार है एक स्वस्थ और एक शीघ्र मर जाता है एक दीर्घायु होता है; इन एक सरीखे तत्त्वों की भिन्नता के पीछे पूर्वकृत कर्म तत्त्व अवश्य होता है / उसी के कारण यह सारी संसार व्यवस्था और विचित्रता चलती है / इस सिद्धांत को मानने वाले भी इहलौकिक सुखों में आसक्त होकर एवं धर्म आराधन तथा शुभकार्यों से वंचित होकर अपने जन्म मरण की वृद्धि करते हैं / अकारकवाद सिद्धांत :- इस सिद्धांत में आत्मा को अकर्ता अक्रिय माना गया है / काच के स्वभाव से जैसे स्वतः प्रतिबिंब पडता है वैसे ही प्रकृतिक विकार पुरुष में(आत्मा में) प्रतिबिंबित होते हैं / जैसे आकाश निष्क्रिय है फिर भी उसमें अनेक रूप प्रतिभाषित होते हैं वैसे आत्मा में अनेक क्रियाएँ प्रतिभाषित होती है / आत्मा स्वयं आकाशवत् निष्क्रिय है। वास्तव में आत्मा को अक्रिय मानने पर कोई अकृत कर्म का फल भोगेगा, कोई कृत कर्म से वंचित हो जायेगा, एक के अशुभ / 78