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________________ आगम निबंधमाला . . वे अज्ञान के कारण स्वयं के हित का विमर्श-विचार करने के भी अयोग्य होते है तो दूसरों को उपदेश देने या अनुशासित करने में कैसे योग्य हो सकते हैं ? अज्ञान के कारण वे किसी को भी उपदेश निर्देश करने में सर्वथा अयोग्य और अंधे के समान होते हैं। ___ इस प्रकार अज्ञानवादी लोग स्वयं अज्ञानी होते हुए भी अपने को पंडित मानकर अन्य का सत्संग भी नहीं करते एवं तर्क-वितर्क मात्र से भोले लोगों को गुमराह करते हैं / ये लोग कर्मों से एवं दुःख से नहीं छूट सकते / पीजरे के पक्षी के समान संसार में ही रहते हैं, मुक्त नहीं हो सकते / कर्मोपचय निषेधवाद-क्रियावादी दर्शन :- इस अध्ययन के दूसरे उद्देशक की गाथा 24 से 29 में इस दर्शन का कथन किया गया है। व्याख्याकारो ने उसे बौद्ध मान्यता सूचित करी है / बौद्ध निम्न प्रकार की क्रिया को केवल क्रिया ही मानते हैं उससे कर्मोपचय नहीं मानते, यथा- (1) कोई भी क्रिया चित्त शुद्धि पूर्वक की जाय उससे कर्मोपचय नहीं होता। पिता पुत्र को मारकर उसका मांस खावे / परिणाम और कारण शुद्ध है तो बंध नहीं होता / (2) क्रोधावेश से मन में रौद्र विचार करे प्रवृत्ति नहीं करे तो कर्म बंध नहीं होता (3) बिना संकल्प से अनजान असावधानी से जो क्रियाएँ होती है जिसमें मारने का परिणाम नहीं है तो हिंसा का कर्म बंध नहीं होता अर्थात् भोजन व्यापार गमनागमन प्रवृत्ति में जहाँ हिंसा का संकल्प नहीं तो कर्मोपचय नहीं होता। (4) स्वप्न में होने वाले हिंसादि कार्य से भी कर्मोपचय नहीं होता। इन सर्व का आशय है कि मन और काया प्रवृत्ति साथ में हो तो कर्मोपचय होता है, अकेले मन. या अकेली काया से नहीं। (1) उनके सिद्धांत अनुसार हनन किया जाने वाला प्राणी सामने हो (2) हनन कर्ता को यह भान हो कि यह जीव है (3) फिर हनन कर्ता को संकल्प हो कि मैं इसे मारूं, ऐसी स्थिति में उस प्राणी को कष्ट दिया जाय या मारा जाय, उसके प्राणों का वियोग हो जाय या उसे कष्ट पहुँचे तो कर्म बंध होता है / वह जीव बच्न कर भाग जाय तो कर्म बंध नहीं होता है / 2 -
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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