________________ आगम निबंधमाला उद्देशक में 6 प्रकार के सिद्धांत-मतमतांतर बताये हैं, वे ये हैं- (1) पाँच महाभूतवाद (2) एकात्मवाद (3) तज्जीव-तत्शरीरवाद (4) अकारक वाद (5) आत्मषष्टवाद (6) क्षणिकवाद- इसके दो रूप हैं- 1. पंच स्कंधवाद 2. चार धातुवाद / इसके अतिरिक्त (7) नियतिवाद (8) अज्ञानवाद (9) कर्मोपचयनिषेधवाद (क्रियावादी) (10) जगत्कर्तृत्ववाद (11) अवतारवाद (12) लोकवाद / वगेरे संबंधी संकेत भी है। पाँच महाभूतवाद सिद्धांत :- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच महाभूत सर्वलोक व्यापी एवं सर्व जन प्रत्यक्ष होने से महान है। इनके अतिरिक्त आत्मा आदि कोई पदार्थ नहीं है / इन पांच महाभूतों के मिलने से चैतन्य शक्ति उत्पन्न होती है परंतु वह पाँच तत्त्वों से भिन्न नहीं है क्यों कि वह पाँच भूतों का ही कार्य है। इस प्रकार इस मतवाले आत्मा, परलोक, पुनर्जन्म आदि तथा शुभ-अशुभ कर्म और उनके फल, कर्ता-भोक्ता आदि कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं / ये प्रत्यक्ष को स्वीकार करते हैं, अनुमान आदि को नहीं स्वीकारते / / जो कि पुनर्जन्म और परभव आदि का होना अनेक प्रमाणों से सिद्ध है। उसे नहीं मानने से दान, धर्म, सेवा, परोपकार, मोक्षसाधना आदि सब निष्फल हो जायेंगे। हिंसा चोरी अराजकता अव्यवस्था का बोलबाला हो जायेगा / पाँच भूतों का गुणं चैतन्य नहीं है अत: वह उनके संयोग से उत्पन्न नहीं हो सकता / ऐसा हो तो मिट्टी आदि को मिला कर बनाए गये पूतले में भी चेतना गुण पैदा क्यों नहीं होता ? पाँच तत्त्व शरीर में रहते हुए भी प्राणी के मर जाने पर उस शरीर में चेतना तत्त्व क्यों नहीं रहता ? जब कि पाँचों तत्त्व तो रहते ही हैं / पांच इन्द्रियां भी पाँच भूत से उत्पन्न है उनका गुण भी चैतन्य नहीं है / एक इन्द्रिय दूसरे इन्द्रिय विषय को जान नहीं सकती / परंतु पाँचों इन्द्रियों से होने वाले ज्ञान को उपस्थित रखने वाला चैतन्य तत्त्व अलग ही है। निष्कर्ष यह है कि पाँच भूतवाद का सिद्धांत मिथ्यात्वग्रस्त है, अज्ञानमूलक है / अतः कर्म बंध और संसार वृद्धि का कारण है / यह चार्वाकों का मत है, उन्हें लोकायतिक भी कहते हैं / | 76 /