________________ आगम निबंधमाला में आये / यह कथन भी आगम तत्त्वों से विपरीत है। मरीचि के जीव को नयसार के भव में समकित की प्राप्ति हो गई थी। एक बार समकित आ जाने के बाद कोई भी जीव एक क्रोडा-क्रोड सागरोपम से भी कम स्थिति के कर्म बांधता है किंतु उससे अधिक नहीं बांधता है / जब कि मरीचि और महावीर के बीच एक क्रोडा-क्रोडी सागरोपम साधिक समय होता है। अत: मरीचि संबंधी कथन की यह तुकबंदी भी कभी चल गई है। नीच गौत्र कर्म से ब्राह्मण कुल मिले यह भी मनकल्पित है। ऐसा किसी भी शास्त्र पाठ में नहीं है। ब्राह्मण कुल को शास्त्र में कहीं भी अपवित्र नहीं कहा गया है। सम्माननीय और पवित्र कुल में ही लिया गया है / उन कुलों में गोचरी जाना, उन्हें श्रावक या श्रमण बनाना आदि कुछ भी निषिद्ध नहीं है / तीर्थंकर से दूसरे क्रम के लोकपूज्य पद और श्रमण शिरोमणी पद पर भगवान महावीर ने सभी ब्राह्मण गौत्रीय उच्च आत्माओं को आसीन किया था और गौतम आदि के साथ प्रारंभ से अंत तक सदा सम्मान युक्त व्यवहार रखा था / अपने धर्मशासन के प्राण रूप द्वादशांगी आगम की मौलिक रचना और संपादन का कार्य भी उनके जिम्मे रखा था। इसे अपमान नहीं सम्मान ही कहा जायेगा। सार यह है कि ब्राह्मण को नीच कुल कहना या समझना एक प्रकार की भ्रमणा है और नीच गौत्र के उदय से कोई ब्राह्मण बनता है यह भी नासमझ की बात है। तीर्थंकर आदि महापुरुष क्षत्रिय आदि ऊपरोक्त छ कुलों में ही जन्मते हैं, यह स्वभाव मात्र है / वे वणिक (वैश्य) कुल में भी नहीं जन्मते / इसलिये शक्रेन्द्र ने संहरण करवाया और भगवान का तीर्थंकर रूप में गर्भ संहरण हो जाना, एक गर्भ में नहीं रह सकना, इसे लोक की आश्चर्यजनक घटना कही गई हैठाणांग सूत्र 10. ठाणांग सूत्र में भी ब्राह्मण के कुल में आने को अच्छेरा नहीं कहा किंतु तीर्थंकर जैसे महापुरुषों का गर्भ काल में इधर उधर किया जाना, इसे आश्चर्य कहा गया है / ठाणांग सूत्र के इस 10 अच्छेरे के पाठ में भी नीचकुल या ऊँचकुल की कोई बात नहीं है / निबंध-४० विविध मतमतांतर सिद्धांत स्वरूप सातवीं गाथा से अठारवी गाथा तक इस अध्ययन के प्रथम