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________________ आगम निबंधमाला जीताचार- अपना परंपरानुगत ध्रुवाचार समझकर अथवा शक्रेन्द्र की आज्ञा होने से कर्तव्य समझकर संहरण किया / शक्रेन्द्र के आदेश देने का और उस आदेश के कारण का कथन यहाँ नहीं है / कल्प सूत्र में वह वर्णन इस प्रकार है शक्रेन्द्र ने जब अवधिज्ञान-दर्शन से यह देखा कि 24 वें तीर्थंकर देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षी में आये हैं, तब उसे यह विचार हुआ कि- तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि (1) अंत्यकुल (क्षुद्र)(२) प्रांतकुल(अधर्मी) (3) तुच्छकुल(छोटा परिवार) या अप्रसिद्ध कुल अथवा धोबी, नाई आदि (4) दरिद्रकुल (गरीब) (5) कृपण कुल(दान नहीं देने वाले) (6) भिक्खकुल(भिक्षा से जीवन यापन करने वाले या भोजन माँगने वाले) (7) ब्राह्मणकुल, इन कुलों में उत्पन्न नहीं होते हैं किंतु (1) उग्रकुल (2) भोगकुल (3) . राजन्यकुल (4) इक्ष्वाकुकुल (5) क्षत्रियकुल (6) हरिवंशकुल / ऐसे कुलो में भी जिनका मातृ-पितृ कुल अकलंकित हो वहाँ उत्पन्न होते हैं / ऐसा विचार कर के इन्द्र ने हरिणेगमेषी देव को आदेश दिया / . इस पाठ में ब्राह्मण या किसी जाति के लिये नीच कुल शब्द का प्रयोग नहीं है तथा अंत, प्रांत, दरिद्र, तुच्छ और माँगने वाले कुलों में भी ब्राह्मण को समाविष्ट नहीं करके उन सभी से उसे स्वतंत्र अलग गिनाया है / गर्भ में आने वाले कुलों के नामों में भी ऊँच कुल शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है तथा उन कुलों में वणिक वैश्य कुलों को भी नहीं कहा है। अत: प्रासंगिक जिन कुलों में जन्मते हैं और जिन कुलों में नहीं जन्मते हैं, उनके नाम निर्देश किये गये हैं / तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण और वैश्य दोनों कुलों में भी तीर्थंकर नहीं जन्मते हैं वे केवल क्षत्रिय आदि उपरोक्त कुलों में ही जन्मते हैं / अत: ब्राह्मण या वैश्य कुल को ऊँच या नीच कुछ भी कहने का शास्त्रकार का आशय नहीं है ।इस प्रकार शास्त्र के मूल पाठ में नीच-ऊँच के शब्द नहीं है / परंपरा की अविवेकजन्य भाषा में ऐसा कथन प्रचलित हो गया है, जो उचित नहीं है। परंपरा में तो यह भी कहा जाता है कि मरीचि के भव में नीच गौत्र का बंध किया था वह बाकी रह गया था इसलिये ब्राह्मण कुल 74
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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