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________________ आगम निबंधमाला जहाँ पर सूर्य का ताप दिन में कभी भी आता हो ऐसे स्थान में बैठे / लोगों का आवागमन या दृष्टि संचार न हो ऐसे स्थान में बैठे। किसी प्रकार की जीव विराधना अर्थात् हरी घास या त्रस जीव, कीडी आदि की विराधना न हो, यह विवेक रखे / यदि जहाँ पर बाहर जाने जैसी योग्य जगह उपलब्ध न हो या शारीरिक बाधा अत्यंत वेग पूर्वक हो तो साधु अपने ठहरे हुए स्थान में आवागमन न हो ऐसी जगह में जाकर, अपने पात्र आदि में मल विसर्जन करके फिर उसको विवेक पर्वक ले जाकर, योग्य स्थान में सूत्रोक्त विधि-निषेधों का ध्यान रखकर परठ दे / . इस अध्ययन से एवं निशीथ सूत्र से तथा अन्य आगम वर्णनों से; ये दोनों प्रकार की विधियाँ साधु के मल विसर्जन के लिये स्पष्ट होती है। दोनों विधियों को गुरु सानिध्य से भलीभाँति समझ लेने पर एवं खुद के विवेक निर्णय की क्षमता होने पर, साधु को मल विसर्जन में किसी क्षेत्र में दुविधा जैसी स्थिति नहीं रह सकती / यदि किसी क्षेत्र में दोनों प्रकार की विधिओं से भी योग्य परिष्ठापन संभव न हो तो वहाँ पर साधु को ठहरना नहीं कल्पता है / फिर किसी भी लाभ के आग्रह से ऐसे स्थानों में जाना या रहना साधु के लिये उचित नहीं है, सर्वथा वर्जित है / . कारण यह है कि ऐसे स्थानों में जाने या रहने की प्रवृत्ति करने पर फिर अनेक सांवद्य और आगम विपरीत आचरणों को करने की प्रेरणा मिलती है और भावना जगती है / फिर संयम का मुख्य लक्ष्य और अनुकम्पाभाव और छ काय रक्षण के आचार का धीरे-धीरे विनाश होता है / अतः योग्य क्षेत्रों में परिष्ठापन भूमि से संपन्न स्थानों में ही ठहरने, रहने का संयम साधक को विवेक रखना चाहये / निबंध-३९ भगवान का गर्भ संहरण, ब्राह्मण कुल विचारणा - इस अध्ययन में भगवान महावीर स्वामी के गर्भ संहरण की तिथि बताई गई है / उसके साथ यह कहा गया है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अनुकम्पक-भक्तिसंपन्न भक्तिवान देव ने अपना
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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