________________ आगम निबंधमाला कुतर्क आदि असमन्वय के मानस से पैदा होते हैं / सार यह है कि त्याग मार्ग श्रेष्ठ है उसका प्रचार भी श्रेष्ठ है, किंतु आगम विपरीत प्ररूपण या दुराग्रह त्याज्य है अर्थात् कल्पनीय और शास्त्र सम्मत पदार्थों का भी त्याग की भावनाओं से त्याग करने की प्रेरणा विवेक के साथ की जा सकती है। कोई भी गच्छ-समाचारी में अनेकानेक त्याग के नियम कायदे भी बनाये जा सकते हैं किंतु उसका प्ररूपण-कथन का तरीका आगम विपरीत नहीं होना चाहिये और जो ऐसे त्याग नहीं करने वाले हो उन पर असत्याक्षेप नहीं होने चाहिये। किसी भी त्याग के महत्व को समझाने में अनेक तरीके हो सकते हैं। उनमें से जो आगम विपरीत तरीका न हो ऐसे श्रेष्ठ विविध उपायों, तरीकों से अपना आशय समझाने का प्रयत्न करना चाहिये। लहसुन संबंधी सात सूत्रों का अर्थ मूर्तिपूजक प्राचीन आचार्य भी यही करते हैं किंतु उनके समुदाय में आगम पढते ही कम है। मूर्तिपूजकों के ग्रंथ 'सेन प्रश्न' में भी लहसुन ग्रहण करना अर्थ स्वीकार किया है / फिर भी कुछ अविवेक भाषी कंदमूल को मांस तुल्य कह देते हैं / - इक्षु के ऊपर से कठोर छिलके उतारने के बाद भी वह कुछ उज्झित धर्म वाला रहता है अर्थात् खाने के बाद कुछ यूँकना, फेंकना पडता .. है किंतु उसका एकांतिक निषेध नहीं है, ऐसा इन विधिनिषेध सूत्रों पर से स्पष्ट होता है / निबंध-३८ मल-मूत्र विसर्जन विधि आगम से यदि योग्य दूरी पर अचित्त जगह शौच निवृत्ति के लिये उपलब्ध हो और शारीरिक बाधा का उद्वेग मर्यादित हो तो श्रमण वहाँ जा सकता है। जाने के पूर्व उसे अपने साथ में जीर्ण वस्त्रखंड ले जाना आवश्यक होता है / यदि जीर्ण वस्त्रखंड उसके पास न हो तो साथी श्रमण से याचना करके ले जावे / जिसका उपयोग शौच निवृत्ति के बाद अंग शुद्धि के लिये, जल शुद्धि के पूर्व किया जाता है / जिससे अल्प जल से अंग शुद्धि हो सके / | 72