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________________ आगम निबंधमाला रस या अर्क निकाला जाता हो, साधु की संयम विधि से मिल सकता हो तो एषणा नियमों का पालन करते हुए उन पदार्थों को या उनके टुकडे आदि विभागों को अथवा रस-अर्क को लिया जा सकता है, उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण रूप में सूत्र में गन्ना, आम और लहसुन तीन स्थलों और पदार्थों का जिक्र किया गया है / तात्पर्यार्थ से अन्य भी फल वनस्पति के प्रकरण को समझा जा सकता है / साधु जहाँ जिसकी आज्ञा से ठहरा हो उस शय्यातर का वर्जन करना आवश्यक होता है उसके अतिरिक्त अन्य आस पास के स्थलों उपवनों में से ये पदार्थ ग्रहण करना समझना चाहिये / यहाँ लहसुन संबंधी सात सूत्र जो हैं, उस पर ऊहापोह-चर्चा का प्रसंग उत्पन्न होता है किंतु आगमों में गोचरी के लिये वनस्पति संबंधी खाद्य पदार्थों के विषय में कोई एकांतिक नियम नहीं है / सचित्त त्याग का नियम आवश्यक है, ऐसा समझना चाहिये / क्षेत्र काल के अनुसार ऐसे पदार्थों के गहस्थ प्रचलन के अनुसार प्रसंग बनते हैं / यथागुजरात प्रांत में इस युग में अदरक और हल्दी(कच्ची) उबली हुई या बिना उबली(नींबू के रस युक्त) आमतौर से जैन गृहस्थों में उपयोग की जाती है और साधु-साध्वी भी प्रायः उपयोग में लेते हैं / जब कि आलू, प्याज, लहसुन या अदरक, हल्दी आदि सभी पदार्थ जमीकंद में और अनंतकाय में तो है ही। आगम शास्त्रों में इन सब के नाम एक साथ आते हैं / इनका कम ज्यादा महत्व आगम से नहीं है किंतु क्षेत्रकाल आदि की अपेक्षा से होता है जैसे कि गुजरात में अदरक हल्दी का कोई ऊहापोह नहीं है / वैसे ही प्रांत, क्षेत्र, काल विशेष से अचित्त वनस्पति के खाद्य पदार्थों का प्रसंग साधु के लिये संभव रहता है असंभव नहीं होता है / किसी भी खाद्य पदार्थ का किसी भी व्यक्ति या समुदाय के लिये त्याग करना श्रेष्ठ है किंतु उसका आगम निरपेक्ष मनमाने या एकांतिक प्ररूपण करना अपराध है और फिर कुतर्क करना कि- अचित्त तो मांस आदि भी मिल सकता है, यह सर्वथा अविवेक और कुतर्क है / क्यों कि मांस का आगमों में एकांत निषेध है, नरक का कारण बताया है, वनस्पति पदार्थों के लिये उसकी समानता नहीं की जा सकती है। शास्त्रों का अध्ययन नहीं करने से ऐसे एकांतिक, दुराग्रह, परम्पराएँ, प्ररूपणाएँ एवं
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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