________________ आगम निबंधमाला नहीं है, व्यक्ति समझ भ्रम हो सकता है / एक लिंग व्यवहार वाले एक क्षेत्र में ससम्मान विचरण करने वाले, साधुओं से पाट का परहेज नहीं करना ही शास्त्र संगत है / उन्हें ससम्मान अपने मकान में ठहराना एवं अपने पाट आदि का निमंत्रण करके उनके साथ बैठना आगम के इस पाठ से स्पष्ट होता है। उन्हें अपना पाट देना और खुद अलग पाट पर बैठना, उस अपने दिए पाट पर नहीं बैठना, ऐसा तो इस सूत्र का अर्थ नहीं होता है और अपना ठहरा मकान उन्हे निमंत्रण करना, देना और खुद उस में नहीं बैठना, नहीं रहना ऐसा भी अर्थ नहीं हो सकता है। ____ अत: जो कोई भी आगम के नाम से ऐसे साधर्मिक अन्य सांभोगिक साधुओं के साथ पाट व्यवहार का परहेज करते हैं अर्थात् उन्हें अपना पाट निमंत्रण पूर्वक देकर फिर उन से अलग पाट पर बैठते हैं उन्हें इस शास्त्र पाठ पर विचार करना चाहिये और समाज में विवेक के साथ रहना. चाहिय / इस अपेक्षा गुजरात प्रांत के साधुओं का विवेक प्रशंसनीय है / वहाँ 9-10 जितने भी संप्रदायों के साधु विचरण करते हैं, भले उनका आहार पानी का संबंध न भी है किंतु पाट का परहेज वे कोई भी किसी से नहीं करते हैं। गुजरात की प्रचलित परम्परा इस अध्ययन के पाठ से पुष्ट है, सही है, अनुकरणीय है / अन्य प्रांत वालों को ऐसी शास्त्रानुकूल परंपरा का अनुकरण करना चाहिये / किंतु गुजरात में जाकर भी ऐसी पाट संबंधी छुआछूत प्रवृत्ति का प्रचार करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये / सार यह है कि स्थानकवासी प्रतिष्ठित समस्त गच्छवाले साधुओं को आपस में पाट का परहेज-अलगाव नहीं रखना चाहिये। निबंध-३७ वन-उपवन में ठहरना और ल्हसुन इस अध्ययन के दूसरे उद्देशक में कुछ पदार्थों के वन उपवनों में ठहरने का कथन किया गया है और विहार आदि कारणों से कभी किसी भी साधु-साध्वी को उन पदार्थों के खाने की आवश्यकता या इच्छा हो और वहाँ पर कोई भी अचित्त होने की प्रक्रियाएँ की जाने वाली शालाएँ आदि हो, जहाँ उन पदार्थों को उबाला, काटा जाता हो,