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________________ आगम निबंधमाला जिसकी जरूरत होने से जो उपकरण रखा हो, जरूरत समाप्त होते ही उसे छोड देना आवश्यक होता है। उसे सदा के लिये मनमाना रखना या दूसरे ने रखा तो में भी रखू, ऐसे अनावश्यक रखने वाले वास्तव में जिनाज्ञा के चोर माने गये हैं। क्यों कि साधु सूक्ष्म अदत्त का भी त्यागी होता है और प्रभु आज्ञा या शास्त्र आज्ञा का उल्लंघन कर उपकरण रखना, गुरु आज्ञा बिना उपकरण रखना, बढाना, ये अदत्त महाव्रत के दोष हैं / दशवैकालक सत्र और प्रश्नव्याकरण सत्र में ऐसे साधुओं के लिये चोर सूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है यथा- तपचोर, रूपचोर (साधुलिंग उपकरण संबंधी), व्रतचोर, आचारभावचोर(समस्त छोटेमोटे विधान की अपेक्षा)। निबंध-३६ अन्य संप्रदाय के साधु के साथ एक पाट पर _ इस अध्ययन में कहा गया है कि साधु जहाँ पर है, वहाँ कोई आगंतुक साधु जो अपने सांभोगिक, एक मांडलिक आहार संबंध वाले पधारें तो उन्हें स्वयं के आहार पानी में से निमंत्रण करके देवे / यदि अन्य सांभोगिक समनोज्ञ-शुद्ध व्यवहार वाले साधर्मिक साधु आ जाय, जिनके साथ एक मांडलिक आहार संबंध नहीं है तो उन्हें अपने ग्रहण किए मकान स्थान, पाट, पाटला, संथारा, घास आदि का निमंत्रण करे, देवे। अपना ही आहार पानी देने का तात्पर्य जैसे एक साथ बैठकर खाना स्पष्ट है, वैसे ही अपना ही मकान, पाट देने से मकान में साथ रहना और पाट आदि में साथ बैठना स्पष्ट है। इससे स्पष्ट है कि लिंग और प्ररूपण में जो समान है एवं आचार में व्यवहारोचित है, समाज में प्रतिष्ठित है, जिन्हें प्रसंगोपात सम्मान दिया जाता है, आदर दिया जाता है, वंदन व्यवहार भी रखा जा सकता है, अपने मकान में सम्मान के साथ ठहराया जा सकता है, एक साथ चातुर्मास भी किया जा सकता है, साथ में बैठकर प्रवचन भी दिया जा सकता है, ऐसे स्वलिंगी साधुओं के साथ पाट आदि का परहेज करना, अलग-अलग पाट का आग्रह रखना, आगम से उपयुक्त
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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