________________ आगम निबंधमाला . . अन्य का अपकर्ष करने का यहाँ सर्वथा निषेध किया गया है। निबंध-३५ साधु को चर्म, छत्र रखना क्यों कब ? - इस अध्ययन में आज्ञा लेने के साधु के उपकरणों में से अनेक के नाम गिनाये हैं / अन्यत्र व्यवहार सूत्र में भी वृद्ध साधु के वर्णन प्रसंग में ऐसे उपकरणों के नाम हैं तथा अन्य मतावलम्बी साधुओं के प्रकरण में भी ऐसे उपकरणों के नाम इसी श्रुतस्कंध के दूसरे अध्ययन के तीसरे उद्देशक में कहे हैं। ___ शारीरिक परिस्थितियों से स्थविरकल्पी भिक्षु को कब किस परिस्थिति में कौन से उपकरण रखकर शरीर एवं संयम जीवन को पार पहुँचाना पड़ सकता है, यह गंभीर विचारणा एवं चिंतन का विषय है अर्थात् ऐसी परिस्थितियों को पार करने के लिये कोई एकांतिक आग्रह सदा के लिये रहे, यह नहीं हो सकता / ऐसी ही अपेक्षा से सूत्रों में अनेक विषय प्रसंगोपात आते हैं जैसे कि नौकाविहार आदि / उन सभी सूत्रों का, सूत्रगत विषयों का संबंध परिस्थिति पर और व्यक्ति पर तथा ज्ञानी गीतार्थ बहुश्रुत गुरु की आज्ञा पर निर्भर रहता है / राजमार्ग, विधिमार्ग या ध्रुवमार्ग तो वही रहता है जो, स्पष्ट रूप से शास्त्र में आचरणीय या अनांचरणीय बताया गया है / . शास्त्र में छत्र धारण को दशवैकालिक, सूयगडांग सूत्र आदि अनेक सूत्रों में अनाचरणीय बताया है। अतः छत्र रखना साध्वाचार में विहित नहीं है, यही प्ररूपणा करने और स्वीकारने योग्य है / अपवाद परिस्थितियों के कोई भी प्रसंग, प्ररूपणा और प्रचार के योग्य नहीं होते हैं / छत्र के समान चर्म आदि कोई भी उपकरण अकारण अपरिग्रही भिक्षु को रखना विधि नहीं है / साधु को सामान्यतया वस्त्र-पात्र आदि 14 उपकरण रखना ही राजमार्ग है। उसके अतिरिक्त जब जितने समय तक जिस उपकरण को रखना अत्यंत जरूरी ही हो और साथ में गुरु आज्ञा हो तभी वह आवश्यक परिस्थिति तक उस उपकरण को रख सकता है / किंतु प्रवाह या अनुकरण मात्र से देखा देखी या मनमाने कोई भी उपकरण नहीं रखा जा सकता। जब कभी / 68