________________ आगम निबंधमाला चल रही है और उसी को मुख्य करके एकांतिक प्ररूपणा की जाती है। किंतु.सूक्ष्म दृष्टि और उभय दृष्टि से ऊपर विवेचन दिया गया है तदनुसार ऐसी एकांतिक आग्रह भरी प्ररूपणा उपयुक्त नहीं है / किंतु दूसरे प्रकार की मुनि जीवन की निषिद्ध विराधना के एकांगी दृष्टिकोण से चल पडी है / वास्तव में दूसरे प्रकार की विराधना की व्यवहार में मुख्यता है / जब कि प्रथम प्रकार की विराधना में समस्त प्रवृत्तियों का, हिंसा कार्यों का समावेश है / निबंध-२९ 21 प्रकार के धोवण पानी क्यों? परंपरा और प्रचलन में 21 प्रकार का धोवणपानी होता है, ऐसा कथन चल गया है / जिसका आधार इसी अध्ययन का सातवाँ आठवाँ उद्देशक है / जब कि उस पाठ में कोई संख्या का निर्देश भी नहीं है और कोई. इसके आधार से संख्या इक्कीस निर्धारित करे तो उसका खंडन उसी पाठ से हो जाता है / फिर भी एकांगी अपेक्षा से कोई प्रचलन चला दिया जाता है और चल भी जाता है / . इस अध्ययन के सातवें उद्देशक के अंत में एक सूत्र में तीन प्रकार के अचित्त पानी का नाम देकर अन्य भी इस प्रकार के अचित्त पानी मिले तो भिक्षु ग्रहण कर सकता है, ऐसा कहा गया है / दूसरे सूत्र में छः अचित्त पानी के नाम देकर कहा गया है कि अन्य भी इस प्रकार के अचित्त पानी भिक्षु ले सकता है / यह इस सातवें उद्देशक के दो सूत्रों की वास्तविकता है। आठवें उद्देशक के प्रथम सूत्र में 12 प्रकार के अचित्त पानी के नाम हैं जिन में बीज, गुठली आदि पडे हों तो उन्हें लेने का, छानकर लेने का भी निषेध है / विधान करने वाला वाक्य वहाँ मूलपाठ में नहीं है। फिर भी अर्थापत्ति से समझ लेते हैं कि बीज गुठली आदि न हो तो वे पानी अचित्त होने से लिये जा सकते हैं / इस सूत्र में भी बारह नाम देकर कहा गया है कि अन्य भी इस प्रकार के बीज आदि से युक्त पानी अचित्त हो तो भी अप्रासुक-अनेषणीय जानकर नहीं लेना / इन तीनों सूत्रों के अंदर आये नामों का योग करके 3+6+12