________________ आगम निबंधमाला निषेध किया जाता है और उसी की सावधानी के लिये प्रत्येक कार्य यतना से, शांति से, विवेक से करने की प्रेरणा की जाती है। प्रथम प्रकार की वायुकाय की हिंसा को रोकने हेतु संयमजीवन की समस्त विधियाँ, अनावश्यक प्रवर्तना को घटाने के लिये होती है और जो भी आवश्यक प्रवृत्तियों की शास्त्र में आज्ञा है वह भी संयम जीवन और दीर्घायु तक इस औदारिक शरीर के निर्वाह के लिये सूचित की गई है / भाव संयम की समाधि और शरीर की समाधि आदि लक्ष्यों से, सर्वज्ञों की दीर्घ दृष्टि से संयम की समस्त विधियाँ आगम में बताई गई है। यद्यपि अनेक विधियाँ गोचरी, विहार, प्रतिलेखना आदि प्रवृत्ति रूप है. फिर भी वे संयम जीवन या अहिंसक जीवन की सुंदर सफलता के लक्ष्य से.तथा शरीर और ब्रह्मचर्य की सुव्यवस्था के लक्ष्य से ही कही गई है। वे प्रवृत्तियाँ आयुष्य कर्म की सत्ता में आवश्यक और लाभप्रद . होने से कही गई है / फिर भी मुनि जीवन में गृहस्थ जीवन की अपेक्षा अनेक प्रवृत्तियाँ घट जाती है और मुनि जीवन में भी आगे बढ़ कर जो साधक निवृत्ति की तरफ बढ़ जाते हैं, आहार और व्यवहार घटा देत हैं, दीर्घ तपस्या और ध्यान कायोत्सर्ग में लग जाते हैं, उनकी प्रवृत्तियाँ घट जाती है / ये सभी तप साधनाएँ संयम जीवन में आगे बढाई जा सकती है / इस प्रकार प्रथम प्रकार की विराधना अल्प अल्पतम होती रहती है, कम की जा सकती है, किंतु संपूर्ण समाप्ति तो 14 वाँ गुणस्थान प्राप्त होने पर अर्थात् मोक्ष जाने के कुछ क्षण पूर्व शरीर छूटने के समय ही होती है। ये दो प्रकार की अपेक्षाओं से गिनी जाने वाली, आगमिक विराधना का स्वरूप बताया गया है / आगम की व्याख्याओं में वायुकाय के शस्त्र दो प्रकार के कहे गये हैं- स्वकाय शस्त्र और परकाय शस्त्र / वायु के जीव, वायु जीवों या वायु शरीरों से भी मरते हैं तथा अन्य किसी भी पदार्थों से या जीवों से भी मरते हैं / कोई परंपरा में ऐसी कथन प्रवृत्ति है कि वायुकाय के एक स्वकाय शस्त्र ही होता है, परकाय शस्त्र नहीं / यह एक अत्यंत स्थूल दृष्टि की अपेक्षा है। ऊपर जो दूसरे प्रकार की विराधना फँकना पंखा करना आदि की बताई गई है, उस दृष्टि की अपेक्षा यह परम्परा धारणा L58