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________________ आगम निबंधमाला =21 संख्या धोवण पानी के लिये चला दी गई है। परंतु वास्तविकता क्या है वह ऊपर स्पष्ट कर दिया गया है। इस 21 के अतिरिक्त दो नाम अचित्त पानी के दशवैकालिक सूत्र में अन्य है तथा निशीथ सूत्र में और भी एक नाम विशेष है जो अन्य सूत्रों में नहीं है। निशीथ उद्देशक 17 में 'अंबकंजिय' शब्द अधिक है। दशवैकालिक अध्ययन पाँचवें में 'वारधोयणं' शब्द नया है / उष्णोदक का अलग कथन भी यहाँ दशवैकालिक में है जिसका (तीनों का) कथन शब्द आचारांग में नहीं है / आचारांग सूत्र में आये शुद्धोदक से कोई उष्ण उदक अर्थ करते हैं, वह भ्रम है / निशीथ सूत्र में शुद्धोदक को धोवण पानी के साथ गिना है वहाँ गर्म पानी अर्थ करना सर्वथा गलत होता है / अत: इन समस्त शास्त्र पाठों का सार यह है कि 21 प्रकार के धोवण, यह संख्या एक चलाई गई परंपरा मात्र है / अचित्त पानी आगम पाठो के अनुसार अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जो भी नाम दिये गये हैं, वे तो उदाहरणार्थ दिये गये हैं, ऐसा समझना चाहिये। निबंध-३० कंदमूल त्याग विचारणा महत्त्व उत्तराध्ययन सूत्र में लहसुन को साधारण वनस्पति में गिनाया और वह भूमि के अंदर होता है अत: अनंतजीवी और कंदमूल है / भगवती सूत्र में कहा गया है कि गोशालक के आजीविकोपासक भी कंदमूल के त्यागी होते थे / तो फिर श्रमणोपासक तो अवश्य ही कंदमूल के त्यागी होने ही चाहिये / जब श्रावक कंदमूल के त्यागी होंगे तो श्रमणों के पात्र में कंदमूल आने का प्रसंग ही कैसे हो सकता ? फिर भी दशवै- कालिक सूत्र अध्ययन तीसरा एवं आचारांग प्रस्तुत प्रथम अध्ययन और सातवें अध्ययन में आये वर्णन से यह ध्वनित होता है कि साधु अचित बने लहसुन या उसके खंड एवं रस को ग्रहण कर सकते हैं। सार- आदर्श मार्ग से साधु एवं श्रावक को कंदमूल का उपयोग नहीं करना चाहिये क्यों कि गोशालक के श्रावक भी कंदमूल का उपयोग नहीं करते थे। / 60
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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