________________ आगम निबंधमाला निबंध-१८ / * अचेलत्व का महात्म्य आगम में सुसाधक मुनि सुआख्यात धर्म के संयम में उपस्थित होकर सदा कर्म क्षय करके आत्मा को निर्मल बनाते रहते हैं / ऐसे उच्च साधकों में से कई साधक विशेष कर्म क्षय हेतु अचेलत्व, नग्नत्व, निर्वस्त्र-साधना स्वीकार करके रहते हैं / उन अचेल-निर्वस्त्र भिक्षुओं के ऐसे संकल्प नहीं होते हैं कि मेरा वस्त्र जीर्ण हो गया है. नये वस्त्र की याचना करूँगा या धागा-सूई लाऊँगा, वस्त्रों को जोदूंगा, सीनूंगा या छोटे को बडा बनाऊँगा, बडे को छोटा बनाऊँगा, पहनूंगा, ओदूंगा इत्यादि संकल्पों से वे मुक्त हो जाते हैं / अचेल साधना में विचरण करते हुए भिक्षु को बारंबार तृणस्पर्श का परीषह एवं गर्मी, सर्दी और डांस-मच्छर के परीषह भी बारंबार आते रहते हैं अर्थात् वस्त्र नहीं होने से विहार या गोचरी में गर्मी के दिनों में सूर्य का आताप सीधा शरीर पर पड़ता है। शीतकाल में शीतल हवा सीधी शरीर से टकराती है / बिछाने के घास काँटे सीधे शरीर में चुभते हैं और निर्वस्त्र होने से डाँस-मच्छर से कोई रक्षा नहीं होती है / इस प्रकार इन परीषहों की वृद्धि से महान कर्म निर्जरा होती है / अन्य भी विविध प्रकार के कष्ट अचेल निर्वस्त्र भिक्षु को आते ही रहते हैं / वे स्वेच्छापूर्वक उन्हें सहन करते हैं / उपधि नहींवत होने से हल्कापन होता है और उन्हें विविध प्रकार के तप की उपलब्धि होती है / वे अचेल मुनि जैसा संयम धर्म भगवान ने कहा है वैसा सभी प्रकार से, पूर्ण रूपेण, सम्यक् विधि से पालन करते हैं / इस प्रकार उन महान वीर संयम साधकों की साधना अनेकों वर्षों तक या पूर्व(करोड पूर्व देशोन) वर्षों तक चल जाती है। उनकी महान सहनशीलता को देखो, विचार करो कि कितनी गजब की हिम्मत होती है उनकी / उन प्रज्ञा संपन्न साधकों का शरीर कृश हो जाने से भुजाएँ कृश हो जाती है / मास खून भी अत्यल्प रह जाता है। ऐसे मुनि अंत में रागद्वेष की श्रेणी को काट कर, समाप्त कर, सच्चे ज्ञानी सर्वज्ञ बन जाते हैं / वे अचेल साधक वास्तविक तीर्ण, मुक्त, विरत कहे जाने के योग्य होते हैं / वर्तमान में अचेलत्व सचेलत्व को लेकर 39 /