________________ आगम निबंधमाला _. व्यवहार दृष्टि या स्थूल दृष्टि में मन के मनन और आत्मा के परिणाम को अलग अलग समझना कठिन होने से दोनों को एक ही कर दिया जाता है / अत: अपेक्षा से दोनों की समानता समझकर समन्वय किया जा सकता है। अपेक्षा से मन योग के अभाव में एकेन्द्रिय आदि को आत्म अध्यवसायों-परिणामों से और काय योग के माध्यम से या वचनयोग के माध्यम से भी अल्प कर्म बंध होता है। - यहाँ उक्त सूत्र में गणधर प्रभु ने अपने लिये मैं शब्द का प्रयोग किया है तथा चिंतन और आत्म परिणाम दोनों को उसी 'अज्झत्थ' शब्द से कहा है। निबंध-१७ शास्त्रों मे 16 रोग और वर्तमान के रोग इस अध्ययन के प्रथम उद्देशे में बडे रोगों का वर्णन इस प्रकार है- (1) गण्डमाला (2) कोढ (3) राजयक्ष्मा क्षय रोग (4) अपस्मार = मृगी रोग (5) काणत्व (6) जडता-लकवा (अंगोपांग चेतना शून्य हो जाना ) (7) कूणित्व-हाथों की विकलता (8) कूबडापन (9) उदर रोग-अनेक प्रकार के होते हैं / (लीवर खराबी,गैस, एसिडीटी) (10) गूंगापन (11) शोथ-सूजन होना (12) भस्मक रोग (13) कम्पन्न रोग (14) पंगु-पाँव विकलता (15) श्लीपद-हाथीपगा(स्थूल पांव) (16) मधुमेह पेशाब संबंधी रोग, डायाबीटीज आदि सोलह की संख्या के साथ ये रोग बताये हैं / इससे अतिरिक्त अनेक आतंक होते हैं, जो तत्काल मृत्यु तक पहुँचा देते हैं / अत: उपरोक्त रोग तो लम्बे समय चल सकते हैं / तत्काल मृत्यु देने वाले रोगों को यहाँ आतंक शब्द से कहा है। किंतु उनका विवरण नहीं दिया है / 16 बडे रोगों का निर्देश शास्त्रों में अनेक जगह आता है / वर्तमान में विविध प्रकार के रोगों के नाम प्रचलित हैं। उनमें से अनेकों का इन 16 में समावेश हो जाता है / अवशेष रहने वाले कई तो सामान्य छोटे रोगों में गिने जायेंगे और कई आतंको में गिने जायेंगे। इस प्रकार वर्तमान के प्रचलित रोगो का समन्वय कर लेना चाहिये / / 38