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________________ आगम निबंधमाला परिण्णाए भवइ / संसयं ब्रह्मचर्य परिणामों में संशयात्मक स्थिति पैदा करने वाले समस्त तत्त्वों को, परियाणओ अर्थात् ज्ञ परिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से उनका वर्जन करने वाला अर्थात् ऐसे समस्त शंका स्थानों को, परिणामों को, चल विचल कर देने वाली प्रवृतियोंआचरणों को, समझकर उनका जो त्याग करता है, उनसे दूर रहता है और ब्रह्मचर्य के परिणामों को दृढ और निर्मल रखता है, वही 'संसारे परिणाए'संसार का त्याग करने वाला अर्थात् संसार मुक्त होने वाला हो सकता है / जो ब्रह्मचर्य में शंका पैदा करने वाली प्रवृत्तियों को समझे नहीं अथवा समझकर उनसे दूर रहे नहीं, अपने को उनसे सुरक्षित रखे नहीं, वह संसार का त्याग करने वाला याने मुक्ति प्राप्त करने वाला नहीं है। __जे छेए-जो कुशल, विवेकी, मोक्षार्थी संयम साधक होते हैं, से. सागारियं ण सेवइ-वे कुशील का सेवन कदापि नहीं करते हैं / किंतु कोई निष्फल साधक कटु एवं अविजाणओ-मैथुन का सेवन करके भी अपने उस असद् आचरण को छिपाता है, गुरु के समक्ष भूल प्रकट कर, आलोचना कर शुद्धि भी नहीं करता.। वह उसकी बिइया मंदस्स बालया-मंदबुद्धिवाले समय पर विवेक से आत्मसंयम या आत्मरक्षा नहीं कर सके, इसलिये विवेक बुद्धिहीन है / ऐसे साधकों की द्वितीय अज्ञानता मूर्खता है कि जो दोष की शुद्धि भी नहीं करे या पूछने पर भी अनजान बन जावे, वह स्वयं के लिये ही कर्मों से भारी बनने में दुहरा अपराध हो जाता है / इसलिये संयम साधना में तत्पर साधक को पहले से ही सावधान रहना चाहिये अर्थात् शंका स्थान ब्रह्मचर्य के संशयकारी स्थानों से सावधान रहते हुए लद्धा हुरत्थाकदाचित् काम भोग सेवन के संयोग या परिणाम उपस्थित हो जाय तो भी पडिलेहाए आगमित्ता-चिंतन अनुप्रेक्षणपूर्वक अपने कर्तव्य को जानकर या गुप्त दोष सेवन के परिणाम का विचार कर, आणविज्जा अणासेवणयाए अपनी आत्मा को कुशील सेवन नहीं करने के लिये ही आज्ञापित करे, आज्ञा दे अर्थात् आत्मा पर अनुशासन-अंकुश रखकर कदापि कुशील सेवन नहीं करे / पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे- स्त्री के रूपों मे आसक्त 34
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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