________________ आगम निबंधमाला होकर विविध परिणति में परिणत होने वाले कई एक जीवों को या साधकों को देखो कि उनकी क्या दशा होती है ? एत्थ फासे पुणो पुणो- वे बारंबार कष्टों को प्राप्त करते हैं। उन्हें इस भव में अपमान, असम्मान और विविध यातनाएँ तथा तिरस्कार की प्राप्ति होती है / भवांतर में दुर्गति के अनेक दु:खों को भुगतना पडता है। यह जानकर संशयकारी स्थानों को, ब्रह्मचर्य में खतरे की स्थिति पैदा करनेवाली प्रवृत्तियों को जानकर एवं समझकर उनका त्याग करने में सावधान रहना चाहिये। ऐसी सावधानी रखने वाला साधक निराबाध रूप से ब्रह्मचर्य में सफल हो सकता है / प्रश्न- बाधाकारी-संशयकारी स्थान कौन से हैं ? उत्तर-यह स्पष्टीकरण प्रस्तुत अध्ययन में नहीं है किंतु उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र एवं आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के भावना अध्ययन में उन संशयों का, खतरों का वर्णन है / उसका सार यह है कि ब्रह्मचर्य साधक (1) स्त्री संपर्क न बढावे (2) उनके शरीर या अंगोपांग देखने में चित्त या दृष्टि न लगावे (3) तत्संबंधी चिंतन चर्चा न करे (4) अत्यावश्यकताओं को छोडकर स्त्रियों से सदा दूर रहे (5) आहार की मर्यादा का, विगय सेवन के त्याग का और तपस्या करने का ध्यान रखे, लक्ष्य रखे तथा उणोदरी तप करने का लक्ष्य रखे (6) शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श इन पाँचों इन्द्रिय विषयों से भी उदासीन भाव बढाता रहे, उनके प्रवाह में नहीं बहे / आगम स्वाध्याय चिंतन मनन ध्यान करता रहे / आत्मार्थ प्रेरक आगम उपदेश वाक्यों से आत्मा के संयम ब्रह्मचर्य के परिणामों को पुष्ट करते हुए जीवन पर्यंत उच्च आराधना में लगा रहे / प्रश्न- ब्रह्मचर्य में बाधा उत्पन्न करनेवाले, ब्रह्मचर्य समाधि परिणामों में संशय युक्त स्थिति रूप चल-विचल परिणाम कर देने वाले प्रसंगों के प्रति पहले से ही सावधानी रखने हेतु उपरोक्त उपदेश विषय सूचित किया गया है / किंतु यदि किसी भी प्रकार की असावधानी हो जाने से चल विचल परिणाम उत्पन्न हो जाय तो क्या करना चाहिये ? / 35