________________ आगम निबंधमाला प्रकार से शब्दार्थ किया जाय तो उक्त कठिनाई समाप्त हो सकती है। विचारणा :- इसी अध्ययन के प्रथम उद्देशक में एक वाक्य और उसका अर्थ इस प्रकार है- पडिलेहिय सव्वं समायाय = यहाँ पर प्रतिलेखना शब्द का भावात्मक अर्थ किया गया है / सर्व शब्द का संख्यात्मक अर्थ न करके सर्व विरति का संक्षिप्त रूप मानकर प्रसंगानुकूल अर्थ किया है, उपरोक्त कर्म संबंधी 'संपूर्ण' स्वरूप को जान-समझकर, उसका विचार कर, सव्वं संयम सर्वविरति को स्वीकार करना चाहिये। इसी विधि से प्रश्न गत सूत्र के पूर्व आत्मा की, कषाय की और स्वकृत कर्म क्षय की बात की गई है और उस सूत्र के बाद भी प्रमत्त अप्रमत्त साधक की बात की गई है / उससे आगे भी संपूर्ण उद्देशे में इन्द्रिय विजय, कर्मजय, संयमप्रेरणा आदि विषयों का संग्रह है / अतः इस सूत्र का अर्थ भी प्रसंग अनुसार इस प्रकार करना चाहिये- जो एक आत्म स्वरूप को जान लेता है, आत्म तत्त्व को अच्छी तरह समझ लेता है अर्थात् आत्मा के जन्म-मरण, कर्मबंध, संसार भ्रमण और पुनः कर्मक्षय एवं मुक्ति प्राप्त कर सकने तक की सभी अवस्थाओं को जान, समझ लेता है, हृदय में श्रद्धा से धारण कर लेता है वह सव्वं सर्व विरति-संयम को भी समझ लेता है / सच्चा श्रेष्ठ जानना वहीं है कि जिसके साथ उसका स्वीकारना अर्थात् आचरण करना भी होता है / इस प्रकार इस सूत्र का यह अर्थ हआ कि- जो एक आत्मस्वरूप को समझ लेता है, वह संयमस्वरूप को भी समझ लेता है, स्वीकार कर लेता है / जो संयम को समझकर स्वीकार लेता है, वह आत्मा के स्वरूप को भली भाँति-अच्छी तरह जान समझ लेता है। यहाँ इस सूत्र के पहले और पीछे संयम का ही विषय है और अध्ययन भी 'शीतोष्णीय' संयम ग्रहण पालन संबंधी है / इसी के * अनुरूप इसके आगे के सूत्र और उनके अर्थ इस प्रकार हैं- सव्वओ पमत्तस्स भयं / सव्वओ अप्पमत्तस्स णत्थि भयं / - प्रमादी को= संसारी को, पाप त्याग न करने वालों को सर्वत्र भय लगा रहता है / / 29 /