________________ आगम निबंधमाला आश्रव से मुक्त हो सके, इस तरह विचार पूर्वक, विवेक पूर्वक उपदेश देवे / वही साधक सभी अपेक्षाओं से सब प्रकार की बुद्धिमत्ता से विचक्षणता से प्रवर्तन करने वाला है, जो कहीं भी पाप से लिप्त नहीं होता है, कर्म बंधन से मुक्त होने की अन्वेषणा करता है अर्थात् कर्म बंधन से स्वयं भी अलग रहे, दूसरों को भी कर्मबंध से दूर करने में प्रयत्नशील रहे; वही संयम का, मोक्ष मार्ग का कुशल ज्ञाता है / इस प्रकार यहाँ मुनि के उपदेश का विवेक ज्ञान बताया गया है / प्रश्न-सामान्यतया मुनि किन विषयों पर उपदेश दे, ताकि किसी को भी विरोधभाव न हो और उनका हित हो? उत्तर- इस विषय का कथन छठे अध्ययन के पाँचवे उद्देशक में किया गया है, वह इस प्रकार है- धर्मिष्ट या धर्म से अनभिज्ञ कोई भी व्यक्ति धर्म श्रवण की भावना से उपस्थित हुआ हो उन्हें मुनि (1) संति- समभाव, क्षमाभाव अथवा जीवादि तत्त्वों के अस्तित्वभाव का; धर्म, अधर्म, पाप के स्वरूप का, (2) विरति- हिंसा असत्य आदि पाप त्याग एवं व्रत नियमों के विश्लेषण का, (3) उपशांतिकषाय त्याग का, (4) मोक्ष प्रेरक- संसार मुक्ति दायक विषयों का, (5) सोयं- भावों की पवित्रता का, (6) सरलता- निष्कपटता का, (7) लघुता- नम्रता, विनयभाव, अपरिग्रह भाव का, (8) अहिंसासत्य आदि विषयों का अथवा दृढता पूर्वक, दोषरहित व्रत पालन का, इत्यादि विषयों पर प्रसंगानुसार विवेकपूर्वक कथन करे / बोलने में खुद को परेशानी न हो एवं सामने वाले श्रोताओं का किसी भी प्रकार से तिरस्कार, अपमान आदि रूप आशातना, अवहेलना न हो; .. अन्य भी किसी प्राणी को दु:खदाई हो ऐसा प्रवचन साधु न करे / संपूर्ण अनासातनात्मक अर्थात् सर्व जीवों को सुखकारी, संसार से एवं कर्म बंध से तारने वाला, मुक्त कराने वाला उपदेश देवे / .. किसी प्रकार के राग द्वेष की मूल भावना से, हृदयकी कलुषता से, कटुता से, किसी को दुःखकारी उपदेश न करे / उपदेष्टा का हृदय उपदेश के समय पूर्ण पवित्र, शांत, हितकारी और सहजभाव युक्त होना चाहिये / / 27