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________________ आगम निबंधमाला साधनावाला हो; पुत्र को गृह संसार भार संभलाकर निवृत्त हो गया हो अर्थात् जीवनभर के लिये परिवार और परिग्रह से पूर्ण निवृत्त साधना में पहुच जाय; वह इच्छित करण योग से यावत् उत्कृष्ट तीन करण तीन योग से भी कोई प्रत्याख्यान या संथारा कर सकता है। किंतु घर परिवार में रचा पचा विशिष्ट ज्ञानी साधक भी आखिर सामायिक पौषध के समय के पूर्ण होने पर समस्त परिवार परिग्रह का अधिकारी रहता ही है। उसके मालिकी की परंपरा पूर्ण व्यवच्छिन होना सामायिक आदि में भी शास्त्रकार ने नहीं स्वीकारी है। अत: श्रावक के अणुव्रत धारण में करण योग के 49 भंग होने पर भी हर कोई घर-परिवार से पूर्ण निवृत्ति लिये बिना तीन करण तीन योग से सामायिक या पौषध आदि नहीं कर सकता। ___आवश्यक सूत्र की 1300 वर्ष से अधिक प्राचीन व्याख्या में छठे आवश्यक के बाद चूलिका में श्रावक के बारह व्रत का मूलपाठ और विवेचन है उसमें उसके तीन करण तीन योग के प्रत्याख्यान की सामायिक आदि के लिए प्रश्न उठाकर निषेध किया है / निवृत्ति और संलेखना के पहले कोई श्रावक तीन करण तीन योग से प्रत्याख्यान नहीं कर सकता है, ऐसा वहा स्पष्ट कथन है / अतः आगम पाठो के आधार से निर्णय करने में भी विवेक रखना बहुत जरूरी है / जैन आगमों का बहुमुखी अध्ययन एवं शोधपूर्वक चिंतन मनन होना भी परम आवश्यक होता है। इस लिए दो करण तीन योग के सामायिक पौषध के घोष पाठों के अनुसार ही प्रत्याख्यान लेकर पूर्ण वैराग्य भावों से अधिकतम करण योगों की साधना करने पर वैसी ही निर्जरा का फल तो साधक को अवश्य हो ही जाता है। अर्थात् जो जितना ज्यादा विवेक रखेगा उसे उतना ही फल प्राप्त होगा। अतः प्रचलित करण योगों में सामान्य रूप से किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। निबंध-१३७ संथारा-दीक्षा तारीख का रहस्य आगम निबंधमाला भाग-१ में आगम मनीषी श्री का स्वास्थ्य सुधार और प्रायश्चित्तकरण का स्पष्टीकरण एवं संथारा तारीख कवर पृष्ठ-४ पर पढकर मुंबई (कल्याण)से आचार्य श्री विजय पूर्णचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य श्री मुक्तिश्रमणविजयजी म.सा.की पत्र द्वारा जिज्ञासा आने पर उसका समाधान प्रेषित किया गया, उस जिज्ञासा एवं समाधान का विवरण इस प्रकार हैजिज्ञासा :- जैनागम नवनीत, आगम निबंधमाला भाग-१ पुस्तक | 249]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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