________________ आगम निबंधमाला निबंध-१३३.. . प्रत्येक जीव के साथ संबंध : अनंतबार ___ यह जीव सब जीवों के माता-पिता आदि संबंधी रूप में भी अनेक बार या अनंत बार जन्म चुका है और सभी जीव इसके माता पिता आदि बन चुके हैं / इसी प्रकार शत्रु-मित्र एवं दास, नौकर आदि के रूप में भी अनेक बार या अनंत बार समझ लेना चाहिये / प्रत्येक जीव लोक के सभी आकाश प्रदेशों पर अनंत जन्म मरण कर चुके हैं / जहाँ जिस क्षेत्र में जैसा स्वभाव है उस के अनुरूप अनंत अनंत भव करना समझ लेना / जैसे नव ग्रेवेयक में देव रूप में अनंत भव कहना, देवी रूप में नहीं कहना / अणुत्तर विमान में देव देवी रूप में अनंतभव नहीं कहना। 1-2 बार ही भव वहाँ किया जाता है, इत्यादि सर्वत्र उपयोग पूर्वक समझना अनंत भवों को। निबंध-१३४ . ____ पाँच प्रकार के देव व अल्पबहुत्व अल्पबहुत्व (१)सबसे थोडे नरदेव(चक्रवर्ती) होते हैं / ये उत्कृष्ट 370 संपूर्ण लोक में हो सकते हैं / 370=170 विजय में से 150 में उत्कृष्ट चक्रवर्ती हो सकते हैं 150 में से भी 20 में एक-एक के पीछे 11-11 जन्मे हुओं की परंपरा चलती है तो 20411=220 परंपरा के जन्मे हुए + 150 उत्कृष्ट चक्रवर्ती पद भोगने वाले, यों दोनों मिलकर 370 की संख्या बनती है / (2) नरदेव से देवाधिदेव संख्यात गुणे होते हैं / ये उत्कृष्ट 1830 हो सकते हैं। उत्कृष्ट 170 विजय में तीर्थंकर हो सकते हैं जिसमें 20 के पीछे जन्मे हुए 83-83 की परंपरा चलती है तो २०४८३-१६६०+तीर्थंकर पद भोगने वाले उत्कृष्ट 170 यों दोनों मिल कर 1660+170=1830 की संख्या बनती है। (3) उससे धर्मदेव (साधु-साध्वी) संख्यात गुणा / ये अनेक हजार क्रोड होते हैं / (4) उससे भव्य द्रव्य देव असंख्य गुणे / मनुष्य-तिर्यंच में देवायु बांधे हुए जीव असंख्य होते हैं / (5) उससे भाव देव असंख्य गुणे / देव आयु बांधे हुए मनुष्य-तिर्यंचों से वास्तविक देव असंख्यगुणे हैं। . निबंध-१३५ __ लोकमध्य तथा तीनों लोक मध्य कहाँ (1) चौदह राजुप्रमाण लोक का मध्य- पहली नरक के नीचे जो आकाशांतर 247