________________ आगम निबंधमाला प्रश्न- पौषधं की विधि के लिये यहाँ क्या फलित होता है ? उत्तर- पौषध लेने के पहले अपने सोने, बैठने, रहने के स्थान का प्रतिलेखन प्रमार्जन किया जाता है / शारीरिक लघुशंका, दीर्घशंका आदि निवारण योग्य उच्चार-पासवण भूमि का प्रतिलेखन अर्थात् निरीक्षणप्रेक्षण किया जाता है। अपने बैठने-सोने और पौषध में उपयोग में लेने के उपकरणों का आसन-शयन का प्रतिलेखन किया जाता है / ऐसा शंखजी ने किया था। पौषध में कोई भी आवश्यक गमनागमन किया जाय तो उसका ईर्यावहि प्रतिक्रमण-कायोत्सर्ग किया जाता है / ऐसा पुष्कलीजी ने शंखजी की पौषध शाला में पहुँचने पर किया था / उसके बाद ही प्रासंगिक बात की थी। प्रश्न-श्रावक-श्राविका के परस्पर वंदन-नमस्कार किस प्रकार होता है? उत्तर- पुष्कलीजी जब शंख जी के घर गये तब शंख जी की उत्पला भार्या सात-आठ कदम सामने गई और वंदन नमस्कार कर आसन निमंत्रित करके फिरं आने का कारण पूछा / यहाँ पाठ में हाथ जोडकर मस्तक झुकाने की प्रवृत्ति के लिये 'वंदइ-णमंसइ' ऐसा प्रयोग है / पुष्कली जी ने शंख जी की पौषधशाला में पहुँचकर ईर्यावहि प्रतिक्रमण करके फिर शंख जी को वंदन नमस्कार करके अपनी बात शुरू की। इस प्रकार इस वर्णन से श्रावक-श्राविकाओं का परस्पर हाथ जोड कर मस्तक झुकाने रूप वंदन नमस्कार करने का स्पष्ट होता है / प्रश्न- त्याग भावनाओं का महत्त्व अधिक होता है यह यहाँ से कैसे फलित होता है ? उत्तर- सामान्य लौकिक बुद्धि से देखा जाय तो शंख जी ने ही खातेपीते पौषध का प्रस्ताव रखा था तदनुसार उन्हें भी करना चाहिये था / किंतु उन्होंने त्याग-तप की वृद्धि के परिवर्तित भावों को गौण नहीं किया, उनका समादर किया, उसे ही कार्यान्वित किया / क्यो कि खाते-पीते पौषध की अपेक्षा उपवास युक्त पौषध का महत्त्व त्याग की अपेक्षा विशेष है ही, इसमें कोई भी शंका नहीं है / फिर भले श्रावकों का (अव्यवहारिकता के लिये) उपालंभ सुनना पडे उसे मंजूर 243