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________________ आगम निबंधमाला किया। पुष्कली जी आये तो उन्हें विवेक पूर्वक अपना व्रत कह दिया। पुष्कली जी भी उत्तर सुनकर विवेक के साथ चले गये / त्याग वृद्धि के पीछे हुई अव्यवहारिकता की दृष्टि के मानस से कुछ श्रावकों ने उपालंभ दिया, रोष भी प्रगट किया। किंतु भगवान ने शंख जी की धर्मजागरणा त्याग तप का महत्त्व दर्शाकर श्रावकों को शांत रहने का फरमाया / इससे भी स्पष्ट है कि व्यवहारिकता का महत्त्व भले ही अपनी जगह पर उचित्त है तथापि त्याग-तप, आत्म विकास की वृद्धि जहाँ हो तो व्यवहारिकता को गौण किया जाना आगम दृष्टि से अनुचित नहीं माना गया है / प्रश्न- खाते-पीते पौषध करने वाले श्रावकों ने अपने व्रत नियम के छ प्रतिपूर्ण पौषध में इसे नहीं गिन कर अलग किया हो, ऐसा मान सकते हैं ? / उत्तर- आगमों में श्रावकों के 6 पौषध के नियम की तिथियों का भी स्पष्टीकरण है कि- एक महीने की दो अष्टमी, दो चतुर्दशी तथा अमावश, पूनम इन छ दिनों में वे प्रतिपूर्ण पौषध करने वाले थे / इन श्रावकों ने जो पौषध किया था वह पक्खी का दिन था और पक्खी चौदस या अमावस-पूनम को ही होती है / इसलिये पक्खी का दिन उन श्रावकों के 6 पौषध का ही दिन था। / भगवान ने दूसरे दिन श्रावकों को शंख जी पर आक्रोश करने का मना किया किंतु यह नहीं कहा कि तुमने खाते-पीते पक्खी पौषध किया यह अच्छा नहीं किया। गौतम स्वामी ने भी इस विषय की कोई चर्चा नहीं की। और आगम में उपलब्ध इस घटना में भी उन श्रावकों ने पौषध व्रत गलत किया था या अपनी 6 पौषध की प्रतिज्ञा में आगार का सेवन किया था, ऐसा कुछ कथन नहीं किया गया। प्रश्न- उन श्रावकों ने पौषध का पच्चक्खाण खाने के बाद लिया या पहले लिया ? उत्तर- पुष्कली श्रावक शंख श्रावक को बुलाने गये तब उन्होंने पौषध पच्चक्खाण ले लिये थे। तभी उन्होंने शंख जी की पौषधशाला में पहले ईर्यावहि प्रतिक्रमण किया था, फिर बात की थी। सामान्यरूप | 244
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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