________________ आगम निबंधमाला का आराधन कर प्रथम देवलोक में उत्पन्न होंगे। फिर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर यावत् संयम-तप का आराधन कर, संपूर्ण कर्मों का क्षय करके मुक्त होंगे। यह संपूर्ण वर्णन यहाँ प्रथम उद्देशक में हैं / प्रश्न- शंख आदि श्रावकों के उक्त वर्णन से पौषध संबंधी क्या फलितार्थ निकलता है? उत्तर- पुष्कली जी जब शंख जी को बुलाने उनकी पौषधशाला में पहुँचे तब उन्होंने पहले ईरियावहि का कायोत्सर्ग किया, फिर वार्ता की। इससे उनका पौषध में जाना स्पष्ट होता है / फिर पुष्कली जी के लौट आने के बाद सभी श्रावकों ने आहार किया / (1) श्रावक के 11 वें व्रत में उपवास बिना भी पौषध किया जा सकता है। (2) ऐसा पौषध भी प्रतिपूर्ण पौषध कहला सकता ह (सावद्य त्याग की अपेक्षा)। (3) पौषध पक्चक्खाण के बाद आहार किया जा सकता है / (4) पौषध पच्चक्खाण के बाद आवश्यक होने पर यतना पूर्वक गमनागमन किया जा सकता है / उसके लिये पहले से मर्यादा करने की आवश्यकता नहीं होती है / (5) व्याख्यान सुनने के बाद अपने-अपने घर जाकर आवश्यक निर्देश कर फिर ए क जगह एकत्रित होने में एक प्रहर से अधिक समय भी लग सकता है / (6) खाते-पीते सामुहिक पौषध की वार्ता न होती तो वे श्रावक उस दिन पक्खी होने के कारण घर जाकर पौषध तो करते ही किन्तु कैसा पौषध करते और कब करते यह निर्णय उस समय तक नहीं लिया गया होगा / अत: घर जाकर कोई खाते-पीते पौषध भी करते, कोई उपवास युक्त भी पौषध करते एवं कोई घर जाकर शीघ्र पौषध करते और कोई कुछ देर से भी करते / अतः प्रतिपूर्ण पौषध व्रतधारी उन श्रावकों के भी आठ प्रहर के समय का या चौवीहार त्याग का अर्थात् आहार नहीं करने का भी आग्रह नहीं था। इन सब फलितार्थों में भगवती सूत्र, 6 प्रतिपूर्ण पौषध व्रतधारी भगवान के शासन के प्रमुख श्रावक एवं भगवान महावीर स्वामी साक्षी रूप एवं प्रमाण रूप है / अतः परंपराओं के आग्रह में किसी के द्वारा इन सूत्र फलितार्थों को इन्कार नहीं करना चाहिये। . | 242