________________ आगम निबंधमाला के शब्द.हैं / परियाए, महं, आराम, ये संयम के शब्द हैं / शेष अध्ययनों में- वसु, महामुणी, णगिणा, विद्यूतकप्पे, महावीराणं, आगय पण्णाणं, भगवओ, उदासीणं, णममाणेहिं, णिट्ठियट्ठी, ये संयमी के शब्द हैं / लूहाओ, यह संयम का शब्द है / निबंध-८ गुस्सा-घमंड कम करने के उपाय ___ क्रोध और मान एक तरह से नहीं, अनेकों तरह से आत्मा में उत्पन्न होते हैं तो उनके कम करने के उपाय भी विविध प्रकारों से हो सकते हैं तथापि यहाँ एक तरीका बताया जा रहा है क्रोध की उत्पति के मूल में अधिकतर मान रहता है और मान के मूल में विशेष कर उच्च गोत्र से उपलब्ध सुसंयोग निमित्त बनते हैं / वहाँ यह चिंतन उपस्थित करना चाहिये कि जीव अनेकों बार जाति, कुल, बल, तप, श्रुत, ऐश्वर्य, रूप और लाभ आदि हीन अथवा उच्च प्राप्त करता ही रहता है। उच्चता हीनता का यह चक्र सभी प्राणियों में चलता रहता है / मेरी आत्मा कभी अल्पज्ञानी, अविवेकी, हीन अवस्था या नासमझी, मूर्खता, होशियारी अथवा गरीब, अमीर, सुरूप, कुरूप आदि बनी ही है और बनती ही रहेगी। अपना मद या दूसरे का तिरस्कार करना, अन्य की किसी भी गलती या हीन दशा पर गुस्सा करना, अपनी किसी भी गुणसंपन्नता में फूलना, अभिमान करना समझदार के लिये उपयुक्त नहीं है / अपनी आत्मा भी कई बार अंधत्व, बधिरत्व, गूंगापन, काणत्व, कूबडापन, अपंग, वामन, श्यामत्व, चित्तकाबरापन आदि अनेकानेक शरीर की हीन अवस्थाओं, हीन योनियों, हीन गतियों अर्थात् नरक निगोद आदि 84 लाख योनियों में अपार दु:ख भोगती भटकती आ रही है। इस प्रकार अपनी और अन्य की सभी अवस्थाओं का विचार उपस्थित रखकर अपने अंदर रहे मान-अभिमान को निर्मूल, निर्बल बनाते रहना चाहिये / वर्तमान में स्वयं के अनेक अवगण, गणहीनता, अपूण्य आदि को भी सम्मुख रखते हुए गुणों, पुण्यों आदि के मान को पुष्ट नहीं होने देना चाहिये / इस प्रकार मान निग्रह करने से उससे संबंधित उत्पन्न होने वाले क्रोध को स्वतः शांत 23 /