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________________ आगम निबंधमाला और भोग का वर्णन है / कान और आँख के विषय-शब्द और रूप को काम कहा गया है और नाक जिव्हा और शरीर के विषय गंध, रस और स्पर्श को भोग कहा गया है। इसलिये कान या आँख वाले जीव कामी कहे गये है और नाक जिव्हा और शरीर वाले जीव भोगी कहे गये हैं / काम से केवल इच्छा-मन की तृप्ति होती है और भोग से प्राप्त पुद्गलों से शरीर की भी तृप्ति-पुष्टि होती है। काम और भोग की वृत्ति-प्रवृत्ति जीवों को ही होती है, अजीवों के नहीं होती है। किन्तु काम-भोग के पदार्थ अर्थात् इन्द्रिय विषय रूप पदार्थ सजीव-अजीव दोनों प्रकार के हो सकते हैं। 24 दंडक में एकेन्द्रिय, बेइंन्द्रिय, तेइन्द्रिय जीव केवल भोगी ही होते हैं; चौरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय कामी-भोगी दोनों होते हैं / अल्पाबहुत्व- (1) लोक में कामीभोगी अल्प होते हैं और (2) भोगी उससे अनंतगुणे होते हैं / सिद्ध जीवों को भी साथ रखने पर सब से थोडे कामी-भोगी, नो कामी नो भोगी सिद्ध अनंतगुणा, भोगी जीव अनंत गुणा / स्वेच्छा से एवं उपलब्ध भोगों का त्याग करने से महानिर्जरा होती है अथवा तो कर्मों का अंत भी होता है, जिससे जीव देवगति में या मोक्षगति में जाता है। छद्मस्थ मनुष्य और आधोवधि ज्ञानी मनुष्य यदि देवलोक में उत्पन्न होते हैं तो वे क्षीणभोगी नहीं होते हैं क्यों कि वे वहाँ विपुल काम-भोगों का सेवन करते हैं / यदि आगामी भव मे वे भोगों का परित्याग करे तो महानिर्जरा एवं मुक्ति प्राप्त करते हैं। / परमावधिज्ञानी और केवलज्ञानी उसी भव में मुक्त होते हैं अत: वे क्षीणभोगी कहे जाते हैं / वे कामभोगों का सेवन नहीं करते हैं / इस शास्त्रपाठ के प्रश्न उत्तर से स्पष्ट होता है कि परमावधिज्ञानी उसी भवमें मुक्त होते हैं वे चरम शरीरी होते हैं। असन्नि जीव इच्छा एवं ज्ञान के अभाव में इच्छित सुख नहीं भोग सकते और सन्नी जीव आलस और अनुपयोग से इच्छित भोग सुख नहीं भोग सकते यह अकाम निकरण वेदना है / सन्नी जीव साधन के अभाव में अथवा क्षमता के अभाव में इच्छित सुख नहीं भोग [228
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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