________________ आगम निबंधमाला मरण प्राप्त करके आगामी स्थान में उत्पन्न होकर आहार, परिणमन आदि करते हैं / पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावर जीव छहों दिशाओं में लोकांत तक उत्पन्न होते है / त्रस जीव छहों दिशाओं में त्रसनाडी में ही अपने-अपने उत्पत्ति योग्य स्थलों तक उत्पन्न होते हैं / मृत्यु प्राप्त कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने वाले सभी जीव मार्ग में अवगाहना का संकोच विस्तार नहीं करके एक सरीखी विस्तृत श्रेणी आत्मप्रदेशों की अवगाहना से ही जन्म स्थान तक पहुँचते हैं / इसे ही मूलपाठ "एगपएसियं सेढिं मोतूण" एगपएसिय- एक सरीखी / पूर्व पाँचवें उद्देशक में भी एगपएसियाए सेढीए- एक सरीखी चोडाई वाली भित्तिरूप में तमस्काय समुद्री जल सपाटी से उपर उठी हुई है जो 1721 योजन तक ऊँची एक सरीखी चौडाई (जाडाई) वाली है / फिर उसके बाद थोडे-थोडे विस्तार में और जाडाई में क्रमिक वृद्धि होती है / निबंध-१२१ . धान्यादि के सचित्त और ऊगने का स्वभाव .. वनस्पति के 10 विभाग मूल से लेकर बीज तक होते हैं / उनमें से 9 विभाग तो सूखने पर अचित्त हो जाते हैं किंतु दसवाँ बीज विभाग है वह सूखने पर भी वर्षों तक सचित्त रह सकता है। इसकी उम्र जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट सात वर्ष की होती है / प्रस्तुत सातवें उद्देशक में बताया है कि धान्य आदि समस्त बीज यदि सुरक्षित कोठी वगेरे में रख दिये जाय, उन पर कोई भी प्रकार का शस्त्र नहीं लगे तो इनके सचित्त रहने की उत्कृष्ट स्थिति बनती है / यहाँ तथा स्थानांग सूत्र में इन धान्यादि बीजों के स्थिति की अपेक्षा तीन विभाजन किये गये ह- (1) गेहूँ चावल आदि धान्य उत्कृष्ट 3 वर्ष सचित्त रह सकते हैं / (2) मूंग चणा उडद आदि द्विदल उत्कृष्ट पाँच वर्ष सचित्त रह सकते है और (3) शेष सभी प्रकार के बीज अलसी, सरसों, राई, मेथी आदि उत्कृष्ट सात वर्ष तक सचित्त योनि रूप में, सजीव रूप में रह सकते हैं / उसके बाद इन पदार्थों की सचित्त योनि नष्ट हो जाती है। सचित्तता की अपेक्षा वह बीज नहीं रहता है। | 223