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________________ आगम निबंधमाला लोकतमिश्र 7. देवअंधकार 8. देव तमिश्र 9. देव अरण्य 10. देव व्यूह 11. देव परिघ 12. देव प्रतिक्षोभ 13. अरुणोद समुद्र / .. निबंध-१२० मारणातिक समुद्घात एक अनुप्रेक्षण वर्तमान भव के अंतर्मुहूर्त आयु शेष रहने पर कोई-कोई जीव मारणांतिक समुद्धात करते हैं / इस अंतर्मुहूर्त के पहले जीव ने कभी भी आगामी भव का आयुष्य बांध लिया होता है तभी मारणांतिक समुद्घात से, अपने निज शरीर को छोडे बिना कुछ आत्मप्रदेशों को आगामी जन्मस्थान तक फैलाता है एवं आयुष्य कर्म की उदीरणा कर पुनः शरीरस्थ होकर फिर आयुष्य को पूर्ण करके (मरने रूप में) समुद्धात करके अर्थात् मरकर(क्यों कि दूसरी बार समुद्धात का प्रयोजन नहीं रहता है) उत्पत्ति स्थान में जाता है और वहाँ आहार, उसका परिणमन और शरीर निर्माण आदि करता है। . वर्तमान भव का आयु रहता है तब आगामी जन्मस्थान पर गये हुए आत्मप्रदेश वहाँ आहारादि ग्रहण परिणमन नहीं करते हैं। क्यों कि यहीं वर्तमान भव के शरीर में आहारादि चालु होते हैं / कई जीव मारणांतिक समुद्घात नहीं करते हैं वे प्रथम बार में ही आयुष्य पूर्ण होने पर मरकर (आगम शब्दो में मरण समुद्धात करके) आगामी जन्मस्थान में पहुँच कर आहार-परिणमन आदि करते हैं / ___शास्त्रपाठ में सीधे मर कर जाने और उत्पन्न होकर आहार करने के कथन में भी समुद्धात शब्द का प्रयोग किया है / ऐसे ही केवली के मोक्ष होने समय में भी मरण समुद्घात शब्दप्रयोग देखने को मिलता है अत: इन शब्दों के आग्रह में नहीं जाते हुए सही आशय समझना चाहिये कि- (1) कोई जीव आयु समाप्त कर सीधे ही मरण प्राप्त कर आगामी स्थान में पहुँचकर आहार-परिणमन आदि करते हैं / (2) कितनेक जीव मृत्यु के अंतर्मुहूर्त पहले मारणांतिक समुद्घात करके, आगामी जन्मस्थान तक आत्मप्रदेश फैलाकर, आयुष्यकर्म की उदीरणा कर, पुनः शरीरस्थ होकर, फिर आयुष्य समाप्त होने पर [22
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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