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________________ आगम निबंधमाला तक एक सरीखी चौडाई वाली भित्ति जैसी है उसके बाद बाहर की तरफ ऊलटे रखे घडे के आकार जैसे तिरछे विस्तृत होती है और घडे की ठीकरी स्थानीय जलभिति भी जाडाई में संख्यात से बढते हुए असंख्य योजन की जाडाई वाली है / जो पाँचवें देवलोक तक फैली हुई है / पाँचवें देवलोक के तीसरे रिष्ट पाथडे तक व्याप्त है। संपूर्ण तमस्काय उलटे रखे मिट्टी के घडे के आकार में है किंतु पाँचवें देवलोक के पास कुक्कुड पंजर के ऊपरी भाग के जैसा आकार कहा है / अर्थात् उपर घडे जैसी गोलाई नहीं है किंतु समतल है / यह सदा एक सरीखी इसी आकार में अनादि काल से लोक स्वभाव से रही हुई है / अपने यहाँ दिखने वाली धुंअर से भी इसमें प्रगाढ अंधकार होता है / . इस तमस्काय के 13 नाम में से अधिक नाम अंधकार की मुख्यता वाले हैं / तेरहवाँ नाम अरुणोदक समुद्र यह पानी रूप नाम है अर्थात् यह तमस्काय कोई अलग चीज नहीं किंतु अरुणोदक समुद्र का ही एक विचित्र अंश है / वैमानिक ज्योतिषी देवों को जम्बूद्वीप में आने के लिये इस तमस्काय को पार करना पड़ता है / तब वे देव अंधकार से भयभीत संभ्रांत होकर शीघ्र निकलते हैं / कोई देव इसमें बादल गर्जन विद्युत भी कर सकते हैं। वह देवकृत विद्युत अचित्त समझना / क्यों कि बादर अग्निकाय तो ढाईद्वीप में ही होती है / देवों का अपना शरीर एवं वस्त्रादि का प्रकाश भी इसके अंधकार से हतप्रभ होता है / 900 योजन की ऊँचाई तक के क्षेत्र में वहाँ जो ज्योतिषी विमान हैं वे भी इस तमस्काय के बाहर ही है भीतर नहीं है, किनारे पर है, उनकी प्रभा भी तमस्काय में थोडी जाकर अंधकार से निष्प्रभ हो जाती है। इस तमस्काय में बादर पृथ्वी और अग्नि नहीं होती है / इसमें अप्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय एवं त्रसकाय के जीव इसमें होते हैं (त्रस जीव तिरछालोक की अपेक्षा समझना) / संसार के सभी जीव तमस्काय में उत्पन्न हो चुके हैं / तमस्काय के नाम इस प्रकार है- 1. तम 2. तमस्काय 3. अंधकार 4. महाअंधकार 5. लोकअंधकार 6. | 221]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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