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________________ आगम निबंधमाला प्रज्ञापना सूत्र में उगने वाले पदार्थ सचित्त, अचित्त मिश्र तीनों प्रकार की योनि वाले कहे गये हैं / तदनुसार ये अचित्त बने हुए धान्यादि का शरीर बंधन संघातन विशिष्ट हो, सुरक्षित रखे गये हों तो 10-20 प्रतिशत बीजो में अचित्त होने के बाद भी ऊगने की क्षमता रहती है वे अचित्त योनिक बीज कहलाते हैं / यहाँ दोनों शास्त्रों में सचित्तता की अपेक्षा ही संपूर्ण विशेषणमय कथन है। किंत प्रज्ञापना सूत्रानुसार अचित्त योनिक उगने वाली वनस्पतियों का भी अस्तित्व संभव है एवं बीज विज्ञान केंद्र से जानकारी करने से भी यह स्पष्ट होता है कि कुछ अच्छे परिपक्व बीज 5-10 वर्ष तक भी उगते हैं / सुरक्षित रखे सभी बीज लम्बे समय तक नहीं उगते / प्रतिवर्ष 5-10 प्रतिशत कम होते होते 8-10 वर्ष तक तो उगने वाले बीजों की संख्या नहींवत् हो जाती है / इसका कारण यह है कि उन बीजों के पुद्गलमय बंधन संघातन भी धीरे-धीरे 5-10 वर्ष में क्षीण हो जाते हैं / एवं उत्पादन क्षमता-अंकुरित होने की योग्यता नष्ट हो जाती है / प्रस्तुत में ज्ञातव्य यह है कि उगने की क्षमता किसी की कितनी भी रहे किंतु सचित्त योनिभूतता प्रस्तुत सूत्र कथन अनुसार तीन-पाँच एवं सात वर्ष की उत्कृष्ट समझनी चाहिये / निबंध-१२२ देवों का नरक में जाना और परमाधामी वाणव्यंतर देवता नीचे प्रथम नरक तक जा सकते हैं। नवनिकाय के भवनपति देव दुसरी नरक तक जा सकते हैं / असुरकुमार देव तीसरी नरक तक जा सकते हैं और वैमानिक देव सातवीं नरक तक जा सकते हैं / उपर प्रथम द्वितीय देवलोक तक असुरकुमार और वैमानिक देव जा सकते हैं आगे के देवलोकों में केवल वैमानिक देव ही जाते है, असुरकुमार देव नहीं जाते / व्यंतर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की होती है / नवनिकाय देवों की उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति होती है। असुरकुमारों की उत्कृष्ट एक सागरोपम साधिक की स्थिति होती है।
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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