________________ आगम निबंधमाला कम्मणिसेगो' कंहा है अर्थात् संपूर्ण कर्म स्थिति में कर्मप्रदेशों की निषेक रचना होती है / अत: आयुकम में अबाधाकाल को छोडकर निषेक रचना नहीं होकर अबाधाकाल सहित संपूर्ण स्थिति में कर्म प्रदेशों की निषेक रचना होती है / / वास्तव में तो आयुष्य कर्म में अबाधाकाल कहने की परंपरा मात्र बन गई है। शास्त्र में तो आयुष्य कर्म का अबाधाकाल कहा ही नहीं है केवल उत्कृष्ट स्थितिबंध ही कहा है और उस स्थितिबंध में सर्वत्र निषेक रचना होती है / उस आयुष्य कर्म के उदय योग्य संयोग नहीं होने से और पूर्व का आयुष्यकर्म क्षय नहीं होने से अगले आयुष्य का विपाकोदय चालु नहीं होता है, प्रदेशोदय तो आयुष्य कर्मबंध के बाद तुरंत चालु हो जाता है। स्त्रीवेद का बंध करने वाला तीसरे आदि देवलोक में चला जाता है तो उसका अबाधाकाल नहीं रहने पर भी अनेक सागरोपम तक स्त्रीवेद का विपाकोदय नहीं होकर प्रदेशोदय ही होता है / उसी तरह आयुष्य कर्म का कोई अबाधाकाल ही शास्त्रकार ने कहा नहीं है / अतः संयोगाभाव और पुराने आयुकर्म के सद्भाव में अगले आयुष्य का प्रदेशोदय होता है / आयुष्य कर्म का अबाधाकाल मानने की जरूरत ही नहीं है / मूलपाठ देखने से ही यह वास्तविकता समझी जा सकती है। किसी भी प्रत में आयुकर्म का अबाधाकाल कहा ही नहीं है मात्र उत्कृष्ट स्थिति बंध कहकर 'कम्मठिई कम्मणिसेगो' कह दिया है / इसलिये आगे के भव का आयुष्य कर्म बंधने के तुरंत बाद उसका प्रदेशोदय चालु होता है विपाकोदय मृत्यु होने पर ही अगले भव का प्रारंभ होता है, तभी कर्म का वेदन कहलाता है'उदओ विवाग वेयणो'-विपाक से कर्मवेदन ही उदय की गिनती में गिना जाता है। अन्य सातकर्मों के जो भी नये बंध होते हैं उनके अबाधाकाल के समय के बीतने के बाद ही प्रदेशोदय चालु होता है / विपाकोदय प्रसंग संयोग होने पर ही होता है। यथा- अशाता वेदनीय कर्म का किसी ने 30 क्रोडाक्रोड सागरोपम का बंध किया कालांतर से संयम का आराधक होकर और मरकर अनुत्तर विमान में देव बना तो 3000 वर्ष / 219