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________________ आगम निबंधमाला .. सागरोपम की स्थिति में कर्मप्रदेशों की निषेक रचना युक्त बंध होता है / इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि 3000 वर्ष की स्थिति तक प्रदेशबंध भी नहीं होने से प्रदेशोदय या विपाकोदय कुछ भी नहीं होता है / सात कर्मों के लिये उपरोक्त स्पष्ट पाठ है अत: उन सातों कर्मों के उत्कृष्ट स्थिति बंध में अबाधाकाल जितना समय न्यून समय की ही कर्म पुद्गलों के बंध की निषेक रचना होती है और उस अबाधाकाल के समय के बीतने के बाद ही प्रदेशोदय यां विपाकोदय का जैसा भी संयोग होता है, वह कर्म उदय में आता है / आयुष्य कर्म के अबाधाकाल का हिसाब सात कर्मों से भिन्न तरह का है / सात कर्मों में उत्कृष्ट जितने क्रोडाक्रोडी सागरोपम होते हैं उसके अनुपात में अबाधाकाल एक निश्चित्त हिसाब से होता हैं, यथा- 70 क्रोडाक्रोड सागर बंध का 7000 वर्ष, 20 क्रोडाक्रोड सागर बंध का 2000 वर्ष, 15 क्रोडाक्रोड सागरबंध का 1500 वर्ष, 10 क्रोडाक्रोड सागर बंध का 1000 ,वर्ष का अबाधाकाल होता है / यह एक निश्चित्त गणित हिसाब वाला अबाधाकाल हैं। - आयुष्य कर्म में ऐसा कुछ नहीं है / उसमें तो जीव अपने चालु भव का जितना समय बाकी रहने पर आयुष्य बांधेगा उतना ही अबाधाकाल होगा / यथा- उम्र का अंतर्मुहूर्त शेष रहने पर तेतीस सागरोपम का आयुष्य बंध किया तो अबाधाकाल अंतर्मुहूर्त का ही होगा / 10 वर्ष मनुष्य उम्र का बाकी रहने पर 33 सागरोपम का आयुष्य बंध किया तो 10 वर्ष का अबाधाकाल होगा। एक क्रोड पूर्व का तीसरा भाग शेष रहने पर कोई 10000 वर्ष देवाय का बंध करे तो अबाधाकाल क्रोडपूर्व का तीसरा भाग रहेगा। किसी जीवने 50000 (पचास हजार) वर्ष की उम्र बाकी रहने पर 10 हजार वर्ष के देवायु का बंध किया तो 50000 वर्ष का अबाधाकाल रहेगा अर्थात् अगले भव के आयुबंध से उसका अबाधाकाल ही ज्यादा हो जाता है / कभी अत्यंत अल्प ही अबाधाकाल होता है / इसलिये शास्त्रकार ने आयुष्य कर्म में उक्त पाठ में भिन्नता रखी है उसमें 'अबाहुणिया कम्मठिई कम्मणिसेगो' ऐसा नहीं कहकर 'कम्मठिई / 218
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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