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________________ आगम निबंधमाला निबंध-११२ . . अचित पदार्थ किसका मुक्केलक __ पृथ्वी, पानी, नमक, वनस्पति के फूल-पत्ते आदि सचित्त पदार्थ अग्नि पर चढे बिना सूर्य के ताप से या अन्य तीक्ष्ण क्षार-अम्ल पदार्थों से अचित्त हो जाय तो वे अपने मूलभूत-पृथ्वी, पानी के या वनस्पति के.शरीर (मुक्तशरीर) कहलाते हैं / जब कोई भी नमक, पानी या वनस्पति के पदार्थ आदि अग्नि से तप्त होकर अचित्त बनते हैं तो वे अग्नि के मुक्त शरीर कहलाते हैं / पूर्वभाव की अपेक्षा से उन्हें पृथ्वी, पानी या वनस्पति के शरीर कह सकते हैं / परंतु अनंतर तो वे पदार्थ अग्नि परिणामित हो जाने से अग्नि के परित्यक्त शरीर कहे जाते हैं / इसका कारण यह है कि कोई भी पदार्थ अग्नि से परितप्त होता है अमुक मात्रा में गर्म होने पर वह पूरा अग्नि जीवों से ग्रहित हो जाता है वह पूरा पदार्थ अग्नि जीव पिंड बन जाता है और अग्नि पर से हटा लेने के बाद तुरंत अचित्त हो जाता है। जैसे कि दीपक टयूबलाइट बल्ब बुझते ही पूर्ण अचित्त हो जाते हैं / अग्नि जीवों का ऐसा ही स्वभाव होता है कि 'अग्नि जलते ही जीव आकर जन्म जाते हैं और अग्नि बुझते ही सभी अग्नि जीव मर जाते हैं / ठीक वैसे ही अग्नि पर तप्त होने वाले पदार्थ अमुक डिग्री के ताप में अग्निकाय जीवमय बन जाते है और अग्नि से अलग कर दिये जाने पर तत्काल अचित्त हो जाते हैं / यथा- गर्म दूध अग्नि से उतारते ही अनंतर अग्निजीव शरीर है और परंपरा से वह दूध पंचेन्द्रिय त्यक्त शरीर है। .. निबंध-११३ - हरिणेगमेषी देव संबंधी सही जानकारी इसके लिये यहाँ उद्देशक-४ में पाठ इस प्रकार है- हरी णं हरिणेगमेसी सक्कदूए इत्थि गब्भं संहरमाणे..। 'हरी' यह व्यक्तिगत विशेष नाम है, हरिणैगमेषी यह संस्कृत छाया बनती है / इसमें तीन शब्द का पदच्छेद होता है- हरि = इन्द्र; नैगम = निर्देश वचन, आदेश | 211/
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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