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________________ आगम निबंधमाला वचन; ऐषी = अपेक्षा रखने वाला, स्वीकारने वाला। प्रथम देवलोक के इन्द्र शक्रेन्द्र के आदेश को स्वीकारने वाला आज्ञाकारी देव / सक्कदूए- दूत कर्म करने वाला, संदेशवाहक। अपना विश्वस्त व्यक्ति दूतकर्म योग्य होता है- (1) यह शक्रेन्द्र की सात सेना में से पैदल सेना का अधिपति-मुखिया और सेनापति देव भी है, ऐसा अन्यत्र वर्णन में आता है (2) यहाँ के शब्द प्रयोग अनुसार यह शक्रेन्द्र का विश्वस्त सेवक-दूत भी है (3) गुणसंपन्न व्युत्पत्ति अर्थ वाला प्रसिद्ध नाम है हरिणैगमेषी देव / (4) व्यक्तिगत नामकरण से यह 'हरी' नाम वाला हरिणैगमेषी देव है। प्रस्तुत में इस देव की अपनी विशेष कार्य कुशलता दर्शाई गई है / पैदल सैना का अधिपति और शक्रेन्द्र का दूत होते हुए भी यह देव गर्भ संहरण की कला में सिद्धहस्त (स्पेश्यालिस्ट) होता है / किसी भी गर्भ को अन्यत्र लेजाने के लिये वह योनिद्वार से ही गर्भ को निकालता है तथापि वह नखं से या शरीर के रोम से भी गर्भ को निकाल सकता है और निकालते हुए भी गर्भ को किंचित् भी कष्ट नहीं होने देता है इतनी सूक्ष्मता से गर्भ संहरण का कार्य करने में यह देव दक्ष होता है। इसीलिये गर्भ संहरण के प्रसंग वाले आगम कथानकों में इसी देव का नामोल्लेख है / अंतगड में कृष्ण वासुदेव के पौषध समय में यही देव उपस्थित हुआ था, उसके सूचन अनुसार गजसुकुमाल का जन्म और दीक्षा हुई थी। कृष्ण के छ बडे भाइयों का भी संहरण स्थानांतरण इसी देव ने किया था। भगवान महावीर को देवानंदा के गर्भ से हटाकर त्रिशला माता के गर्भ में शक्रेन्द्र की आज्ञा से इसी देव ने रखा था / निबंध-११४ देवों को मनःपर्यवज्ञान जैसी क्षमता ___ मनःपर्यव ज्ञान मुनियों को, श्रमणों को ही हो सकता है / देवों को विशिष्ट अवधिज्ञान हो तो वे मन में मनन किये गये रूपी द्रव्यों को जान देख सकते हैं / रूपी द्रव्यों को जानना अवधिज्ञान का | 212] - - -
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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