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________________ आगम निबंधमाला दिखाकर चला गया था। इसी कारण से उसके जाने के बाद गौतम स्वामी ने उसका भूतकाल जानने की जिज्ञासा से प्रश्न किया था / उपर जाने में शक्रेन्द्र की गति तेज होती है चमरेन्द्र की कम। नीचे जाने में चमरेन्द्र की गति तेज और शक्रेन्द्र की कम होती है। वज्र की गति दोनों इन्द्रों से कम होती है नीचे-उपर जाने में / . प्रश्न- चमरेन्द्र को देवलोक में जाने की घटना में अरिहंत और भावितात्मा अणगार के शरण की बात कही है तो क्या मंदिर मूर्ति की शरण भी ली जा सकती है ? उत्तर- (1) कोई प्रति में अरिहंत चेइयाइं पाठ भी है किंतु प्राचीन प्रतियों में वैसा पाठ नहीं है / (2) अरिहंत और अणगार के लिये एक वचन का प्रयोग है तो अरिहंत चैत्य के पाठ में बहुवचन का प्रयोग भी संदेहोत्पत्ति का कारण है / (3) शरण अपने से बलवान की ली जाती है, मंदिर मूर्ति तो अपना भी रक्षण नहीं कर सकती, वहाँ चोर चोरी कर जाते हैं कभी सरकार भी जप्त कर लेती है / (4) कहीं कोई मूर्ति देवाधिष्ठित हो तो भी वे देव भूत या यक्ष, चमरेन्द्र के सामने तुच्छ होते हैं और अरिहंत सिद्ध तो उस मूर्ति में कभी वापिस आते ही नहीं है। अत: चमरेन्द्र को शक्रेन्द्र की आशातना करने में शरण तो शक्रेन्द्र से भी बलवान की चाहिये, वह मूर्ति में कभी भी संभव नहीं है / अतः अरिहंत और भावितात्मा अणगार दो की शरण का पाठ ही उपयुक्त है / (5) शक्रेन्द्र ने वज्र फेंकने के बाद चिंतन किया कि किसी की शरण बिना चमरेन्द्र नहीं आवे तो इस चिंतन के पाठ में अरिहंत और भावितात्मा अणगार दो ही शब्द सभी प्रतियों में है। तो चमरेन्द्र के शरण लेने के चिंतन में मूर्ति का पाठ होना और शक्रेन्द्र के शरण के चिंतन में बिना मूर्तिका पाठ होना भी संदेह को प्रकट करता है / एक ही प्रकरण में दो प्रकार का पाठ उपयुक्त नहीं कहा जा सकता / अरिहंत चैत्य शब्द जो भी प्रति में आये हैं वे उचित नहीं है ऐसा मानना ही समाधानकारक है / अत: दो की शरण का पाठ ही संदेह रहित और योग्य होने से स्वीकार्य है / / [ 210]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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