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________________ आगम निबंधमाला अकांत, अंप्रिय, अमनोज्ञ, अशुभ शब्दों से तिरस्कृत करने लगा। तब शक्रेन्द्र ने कोपित होकर चमरेन्द्र को संबोधन करके अपमान सूचक शब्द प्रयोग करके सिंहासन पर बैठे-बैठे ही अपने वज शस्त्र को ग्रहण कर चमरेन्द्र को मारने के लिये फेंक दिया। उस वज्र से हजारों चिनगारियाँ ज्वालाएँ निकल रही थी। जिससे वह वज्र आँखों को भी चकाचौंध कर दे वैसा महाभयंकर, त्रासजनक दिखता था / __ उसे देखते ही चमरेन्द्र का घमंड-गुस्सा नष्ट हो गया वह तो डरकर उलटा शिर करके भागा अर्थात् नीचे शिर उपर पाँव करके तत्काल भगवान की शरण में पहुँच गया और 'भगवान आप का शरणा' ऐसा बोल कर भगवान के दोनों पाँवों के बीच में छोटा रूप बनाकर छुप गया। नीचे आने में उसका स्वस्थान होने से उसकी तीव्र गति होना स्वाभाविक है / शक्रेन्द्र और उसका शस्त्र उसे पहुँच नहीं सका / भगवान महावीर की शरण लेकर आया ऐसा मालुम पडने पर शक्रेन्द्र भी शस्त्र को पकड़ने के लिये तत्काल चला और भगवान के मस्तक से चार अंगुल दूर रहे वज्र को शक्रेन्द्र ने पकड लिया / तब शक्रेन्द्र की मुट्ठी की हवा से भगवान के मस्तक के बाल मात्र प्रकंपित हुए / शक्रेन्द्र ने विनयपूर्वक भगवान से हकीगत निवेदन कर क्षमा मांगी फिर कुछ दूर जाकर भूमि को तीनबार बाये पाँव से आस्फालन करके, चमरेन्द्र को संबोधन करके कहा कि भगवान के प्रभाव से तुम्हें छोडता हूँ, अब तुम्हें मुझ से कोई भय नहीं है' ऐसा कहकर शक्रेन्द्र चला गया और चमरेन्द्र भी शक्रेन्द्र से महान अपमानित बना हुआ चुपचाप चला गया। फिर अपनी रिद्धि सहित पुनः उसी स्थान पर आया और भगवान को भक्तिपूर्वक वंदन नमस्कार किया। अपनी कृतज्ञता प्रगट करी, क्षमा याचना करी तथा 32 प्रकार के नाटक दिखाकर चला गया। ___ यह हकीगत-घटना भगवान ने गौतम स्वामी के पूछने पर निरुपित की है और पूछने का कारण भी यही था कि उस समय भी राजगृही नगरी में चमरेंद्र भगवान के दर्शन करने के लिये आया था एवं गौतमादि अणगारों को अपनी ऋद्धि तथा 32 प्रकार के नाटक | 209/
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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