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________________ आगम निबंधमाला वर्गणा का(ओक्सीजन का, प्राणवायु का) श्वास लेते हैं / एकेन्द्रिय जीव त्वचा से, स्पर्शेन्द्रिय से श्वास लेते हैं / निबंध-१०८ केवली भगवान का आहार : आगम प्रमाण सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान को ऐसा कोई एकांत आग्रह नहीं होता है / वे जैसी ज्ञान से स्पर्शना देखते जानते, वैसा ही आचरण कर लेते हैं / स्कंधक संन्यासी भगवान के पास आया उन दिनों भगवान नित्यभोजी थे, ऐसा यहाँ पर पाठ में कथन है / अत: अन्य समय में कभी नित्यभोजी नहीं भी होवे तब तपस्या करना भी स्पष्ट हो जाता है। भगवान महावीर स्वामी ने गौशालक के उपद्रव से अभिभूत होकर भी 6 महीने तक औषध ग्रहण नहीं किया और अंत में सिंहा अणगार को भेजकर निर्दोष औषध मंगाकर उसका सेवन भी किया था। इस प्रकार भगवतीसूत्र के इन दोनों वर्णन से भी यह स्पष्ट होता है कि भगवान आहार, उपवास, औषध आदि के संबंध में अनाग्रही वृत्ति वाले थे ।इस सूत्र अनुसार दिगंबरों के द्वारा भगवान के लिये और केवलियों के लिये एकांत आहार का निषेध करना स्पष्ट ही गलत सिद्ध होता है परंतु वे इन आगमों को ही अस्वीकार करके बेधडक बन गये हैं, उन्हें कुछ कहे जाने का स्थान भी नहीं रहता है / निबंध-१०९ तुंगिया नगरी के श्रावकों के गुण ऐहिक ऋद्धि- (1) वे श्रमणोपासक ऋद्धिसंपन्न थे। (2) प्रभाव-शाली थे या सदा प्रसन्न रहने वाले थे। (3) उनके लंबे चौडे अनेक भवन थे / (4) आसन, शयन, वाहनों की उनके वहाँ प्रचुरता थी। (5) बहुत धन था और सोने-चांदी के भी भंडार भरे रहते थे / (6) लेन-देन एवं व्याज का धंधा करने वाले थे। (7) खाने के बाद बहुत भोजन उनके घरों में बचता था, जो अनेक लोगों को एवं काम करने वालों को दिया जाता था। (8) उनके घरों में काम करने वाले अनेक / 20
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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