________________ आगम निबंधमाला ही व्रतनिष्ठा, आचारनिष्ठा पलोट्टइ = परिवर्तित हो जाती है, बदल जाती है; जिससे वे व्रतभंग करते हैं / सयम में स्थिर चित्त वाली आत्मा में आचार निष्ठा नहीं बदलती है जिससे वे व्रतभंग नहीं करते है। इस तरह पंडितपना और बालपना(बालत्व) अशाश्वत है / पंडित और बाल बनने वाला जीव शाश्वत है / प्रश्न- आधाकर्मी आदि आहार के दोषों की उपेक्षा करने से क्या होता है ? उत्तर- प्रस्तुत उद्देशक-६ में यह समझाया गया है कि गवेषणा के मुख्य दोष- आधाकर्म, क्रीत, स्थापना, रचित दोष एवं कंतारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, बद्दलियाभक्त, ग्लानभक्त, शय्यातरपिंड, राजपिंड; इन दोषों के विषय में जो श्रमण (1) इसमें कुछ भी दोष नहीं है ऐसा मन में सोचे (2) ऐसा सोचकर खावे (3) ऐसा सोचकर अन्य को देवे (4) अनेक लोगों में ऐसी प्ररूपणा करे; इस प्रकार के प्रवर्तनों में यदि वह काल कर जाय तो विराधक होता है। किंतु अपनी भूल स्वीकार करके आलोचना प्रायश्चित्त कर लेवे तो वह आराधक होता है। निबंध-१०७ एकेन्द्रिय और श्वासोश्वास ___पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु तथा वनस्पति ये पाँचों एकेन्द्रिय जीव भी त्रस जीवों की तरह निरंतर श्वासोश्वास लेते हैं, वे भी श्वासोश्वास वर्गणा के पुद्गलों को 6 दिशा से अथवा कोई 3,4,5 दिशा से ग्रहण करते हैं। लोक मध्य में 6 दिशा से और लोकांत में स्थित जीव 3,4,5 दिशा से श्वासोश्वास वर्गणा के पुद्गल ग्रहण करते हैं। वायुकाय के जीव भी निरंतर वायु का श्वासोश्वास लेते हैं। सैद्धांतिक दृष्टि से जिन्हें श्वासोश्वास वर्गणा के पुद्गल कहा जाता है उसे ही स्थूल दृष्टि से अथवा व्यवहार से वायु कहा जाता है / श्वासोश्वास वर्गणा रूप वायु अचित्त होती है और वायुकाय जीव रूप वायु सचित्त सजीव होती है। सभी जीव अचित्तवायुरूप श्वासोश्वास | 201]