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________________ आगम निबंधमाला करे इतनी अवगाहना है / फिर भी चक्रवर्ती की जवान स्वस्थ दासी वज्रमय शिला और शिलापुत्रक(लोढे) से लाख के गोले जितनी पृथ्वीकाय को 21 बार पीसे तो कई जीव मरते हैं, कई नहीं मरते, कई संघर्ष को प्राप्त होते हैं, कई को संघर्ष नहीं होता, कई को स्पर्श होता है, कई को स्पर्श मात्र भी नहीं होता है / इस प्रकार कुछ पीसे जाते हैं, कुछ नहीं पीसे जाते हैं / ऐसी छोटी पृथ्वीकाय की अवगाहना होती है। पृथ्वी आदि पाँच स्थावर की वेदना :- यहाँ तीसरे उद्देशक में यह समझाया गया है कि- कोई जवान, स्वस्थ पुरुष किसी वृद्ध अशक्त पुरुष को मस्तक पर जोर-जोर से प्रहार करे, तब उसे जैसी वेदना होती है इससे भी अनिष्टतर वेदना पृथ्वीकाय आदि पाँचों एकेन्द्रिय जीवों को स्पर्श मात्र से होती है / निबंध-६ साधु को कैसा होना, रहना, बन जाना ___ जिसने घर छोड दिया है; सब कुछ संसार का त्याग कर दिया है; उसे सरल, साफ हृदयवाला, सरलता से परिपूर्ण बनकर, सदा मोक्ष के लक्ष्य से संसार मुक्त बनने के उद्देश्य में प्रयत्नशील रहना चाहिये। अन्य कोई भी किसी प्रकार की माया, कपट, प्रपंच, चालबाजी, स्वार्थवश या द्वेष-ईविश कुछ भी छल प्रपंच नहीं करना चाहिये / पवित्र, परम पवित्र हृदयी बनकर मोक्ष साधना में लगे रहना चाहिये / किसी प्राणी, मानव या साधक आत्माओं के प्रति किंचित् भी कलुष भाव, डंख भाव न रखते हुए, सहज सरल भावों में लीन रहना चाहिये / ऐसी सहजता, सरलता, निष्कपटता, पवित्रता से साधनालक्षी आत्मा को अणगार कहा गया है, कहा जाता है / घर छोडकर अणगार बने साधक ने जिस भावना, श्रद्धा, उत्साह और लक्ष्य से घर का त्याग किया है, उसी को कायम रखते हुए, स्थिर रखते हुए, उसे जीवन पर्यंत संयम का पालन करना चाहिये / श्रद्धा, उत्साह एवं लक्ष्य में किसी भी प्रकार का विघटनकारी विचार, पहलू, संकट, आपत्ति या बाधा उपस्थित हो जाय तो उसका समाधान / 20 /
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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