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________________ आगम निबंधमाला वाले प्राणी यां मानव के पाँव की अंगुली से लेकर मस्तक तक के किसी भी शरीर विभाग का कोई छेदन भेदन करे तो उसकी वेदना स्पष्ट दिखती है ! वैसे ही पृथ्वी, वृक्ष आदि के छेदन भेदन से उन जीवों को भी वेदना होती है। (3) जैसे कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को तलवार से भले एक ही वार में प्राण रहित कर देता है, इतना शीघ्र मरते हुए भी उस मानव को शरीर की अपार वेदना में मरना पडता है, वह हमें समझ में आ सकता है / वैसे ही शीघ्र मर जाने वाले इन स्थावर प्राणियों को भी मरने की अपार वेदना होती है, क्यों कि वेदना का अनुभव करने वाले चेतन का अस्तित्व उसमें भी है। (4) कोई व्यक्ति किसी को इतना मारे कि वह व्यक्ति बेहोश, मूर्छित होकर गिर पडे अथवा कोई बालक बहुत उँचे स्थल से गिरते ही मूर्च्छित हो जाय, रोने की आवाज भी नहीं करे तो उसे अपार वेदना में होना हम स्वीकार करते हैं। वैसे ही स्थावर प्राणियों को कष्ट वेदना होती है, उसे ज्ञानियों के वचन से और इन दृष्टांतों से समझकर स्वीकार करनी चाहिए। ... इस प्रकार के दृष्टांत सूचक शब्द दूसरे उद्देशक में दिये गये हैं / भंगवती सूत्र शतक-१९ उद्देशक-३, में स्पर्श मात्र से इन एकेन्द्रिय जीवों को घोर वेदना होती है, यह बताया गया है / समुच्चय बोल से- पृथ्वी से पानी सूक्ष्म है / पानी से अग्नि, अग्नि से वायु और वायु से वनस्पति सूक्ष्म है / समुच्चय बोल सेवायु से अग्नि बादर (बडी) है / अग्नि से पानी बादर है पानी से पृथ्वी बादर है और पृथ्वी से वनस्पति बादर(बडी)है / चार स्थावर की जघन्य उत्कृष्ट सभी अवगाहनाएँ अंगुल के असंख्यातवें भाग की है अर्थात् उक्त 43 बोलों में अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की ही है, केवल ४४वें बोल में उत्कृष्ट एक हजार योजन साधिक है। पृथ्वीकाय की सूक्ष्मता और कठोरता :- यहाँ शतक-१९,उद्देशक-३ में यह समझाया गया है कि उपरोक्त 44 बोलों की अल्पाबहुंत्व में बादर पृथ्वीकाय का नंबर नौवाँ है अर्थात् आठ बार असंख्य गुणा
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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