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________________ आगम निबंधमाला में आकर फिर से उत्कृष्ट 12 वर्ष रह सकता है / इस तरह एक जीव की निरंतर एक ही गभस्थल में रहने की कायस्थिति 24 वर्ष की मनुष्य की अपेक्षा हो सकती है / (2) एक जीव एक भव में अनेक सौ व्यक्तियों के पुत्र रूप में उत्पन्न हो सकता है अर्थात् उसकी माता की योनी में 12 मुहुर्त में इतने पुरुषों का वीर्य प्रविष्ट हो सकता है / सन्नी जलचर तिर्यंचों में या नदी में स्नान करने वाली स्त्रियों की अपेक्षा ऐसा संभव हो सकता है अथवा एक स्त्री का सेकडों पुरुषों के साथ संबंध हो सकता है वे सभी उस स्त्री के पुत्र के पिता कहे जा सकते हैं। (3) एक जीव के उत्कृष्ट लाखों पुत्र हो सकते हैं यह भी करोड पूर्व की उम्र एवं तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अपेक्षा ज्यादा संभव है / जलचर मादा एक साथ लाखों अंडे दे सकती है अथवा स्त्री योनी में एक साथ लाखों जीव उत्पन्न होकर विनष्ट हो जाते हैं वे भी पुत्र ही कहे जाते हैं / (4) इसी कारण मैथुन सेवन में होने वाले असंयम को समझाने के लिये रुई से भरी नालिका में तप्त शलाका डालने का दृष्टांत उपमित किया गया है / मैथुन सेवन मोह परिणत आत्म विकार भाव है। यह स्वयं चौथा पाप है तथा लाखों पंचेन्द्रिय जीवों का विनाश हेतुक होने से प्रथम पाप से युक्त भी है / अत: अब्रह्म को दशवैकालिक अध्ययन-६ में अधर्म का मूल और महान दोषों का ढेर है, ऐसा बताया गया है / निबंध-१०३ कवलाहार का परिणमन कितना प्रश्न- जीव की सर्व आत्मप्रदेशों से उत्पत्ति, मरण या आहार आदि होते हैं या देश से, अर्ध से भी ? उत्तर- जीव के आत्मप्रदेशों का विभाजन नहीं होता है वे देश से या अर्ध से उत्पन्न नहीं होते, सर्व आत्मप्रदेशों से उत्पन्न होते हैं; सर्व आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं अर्थात् आहार का परिणमन सर्व आत्मप्रदेशों में होता है। मात्र दिखाउ ग्रहण निस्सरण मुख आदि से होता है। इसी तरह मरण भी सर्व आत्मप्रदेशों से होता है / ग्रहण किये जाने वाले आहार पुद्गलों में से कभी सर्व का आहार(परिणमन) होता है | 197]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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