________________ आगम निबंधमाला . . कभी देश का परिणमन होता है अर्थात् रोमाहार ओजाहार में सर्व ग्रहित आहार का पूर्ण परिणमन होता है / कवलाहार में संख्यातवें भाग का आहार रूप में परिणमन होता है और अवशेष आहार का निस्सरण हो जाता है / इसी तरह चोवीस दंडक में भी समझ लेना चाहिये / [असंख्यात भाग के परिणमन का कहने की परंपरा तथा वैसा उपलब्ध होने वाला पाठ अशुद्ध है। क्यो कि एक बार के कवलाहार का असंख्यातवाँ भाग परिणमन होना मानने पर 100 वर्ष में क्रोडवार कवलाहार करने पर भी असंख्यातवे भाग आहार ही कुल जीवनभर में परिणमन होगा। तब पाँच कि.ग्रा. वजन का बालक जीवनभर में 6 कि.ग्रा. वजन वाला भी नहीं हो सकेगा। अत: संख्यातवें भाग का परिणमन वाले पाठ को शुद्ध स्वीकारना योग्य है।] निबंध-१०४ व्यवहारनय निश्चयनय: कालाश्यवेशी अणंगार वे अणगार तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के शिष्य थे एवं बाह्य प्रवृत्ति या व्यवहार के आचरण के प्रति कुछ संदेहशील थे अर्थात् ये वेशभूषा और बाह्य प्रवृतियाँ सामायिक संवर आदि कैसे हो सकती है ? भगवान महावीर स्वामी के स्थविर भगवंतों का समागम हो जाने पर अपनी उलझन को जिज्ञासा रूप में एवं आक्षेपात्मक शब्दों में रखी। स्थविर भगवंत अनुभव वृद्ध थे, वे उस अणगार की मनोस्थिति समझ गये और व्यवहार को गौण करके, निश्चय नय की भाषा में बोले कि- आत्मा ही सामायिक और सामायिक का अर्थ है, आत्मा ही संवर और संवर का अर्थ है प्रत्याख्यान विवेक और व्युत्सर्ग भी आत्मा ही है। गुण गुणी में होते हैं अत: ये सभी आत्म स्वरूप ही है / प्रतिप्रश्न-तो फिर क्रोधमान आदि भी आत्मस्वरूप ही है आत्मा में होने से, तो उनकी गर्दा क्यों की जाती है ? समाधान- क्रोधादि आत्मस्वरूप होते हुए भी अवगुण रूप है, उनकी गौं-विवेक संयम के लिये की जाती है / गर्हा दोषों का विनाश करने वाली है एवं बालभाव का निवारण करती है। जिससे आत्मा में संयम पुष्ट | 198