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________________ आगम निबंधमाला मिलकर इकट्ठे होकर चिरकाल-कुछ समय तक रहती है वैसे यह सूक्ष्म स्नेहकाय इकट्ठे होकर रहती नहीं है किंतु गिरते ही तत्काल विध्वंश-नष्ट हो जाती है / इस प्रकार यहाँ सूक्ष्म स्नेहकाय को बादर अप्काय के समान होने का निषेध किया है और ओस, कुहरा, धूअर आदि जैसी चक्षुग्राह्य भी यह स्नेहकाय नहीं है और इसका अस्तित्व जहाँ गिरे वहीं नष्ट हो जाता है। तब भला इस सक्ष्म स्नेहकाय के नाम से रात्रि में मस्तक पर कपडा ओढना एवं कंबली ओढना तथा सुबह-शाम सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले एक प्रहर तक कंबली ओढना वगेरे परंपरा अत्यंत विचारणीय अर्थात् समीक्षा करने योग्य है / क्यों कि आगम में कंबली या वस्त्र रखने का ही साधु के लिये आग्रह नहीं है / अचेल होना या वस्त्र की उणोदरी करना प्रशस्त कहा है / जवान स्वस्थ साधु को एक जाति के ही वस्त्र रखने की अर्थात् मात्र सूती वस्त्र रखने की ही शास्त्राज्ञा है, दूसरी जाति के वस्त्र रखने का स्पष्ट निषेध है / अत: ऊनी वस्त्र रूप कंबल रखने का जरूरी कायदा करना आगम विपरीत प्ररूपणां है तथा इस सूक्ष्म स्नेहकाय का गलत भ्रमित मनमाना तात्पर्य निकाल करके नासमझी से चलाया हुआ ढर्रा मात्र हैं, ऐसा समझना चाहिये / इस विषय संबंधी कुछ स्पष्टीकरण दशाश्रुतस्कंध सूत्र के सारांश में और भगवतीसूत्र के सारांश में यथास्थान किया गया है। विशेष जिज्ञासा वाले पाठकों को उन स्थलों का अध्ययन अवश्य करना चाहिये / निबंध-१०२ . गर्भस्थ जीव संबंधी आगमिक परिज्ञा ... (1) माता-पिता के संयोगजन्य शुक्र-शोणित का मिश्रण 12 मुहुर्त तक पुत्रोत्पत्ति के योग्य रहता है / (2) उत्पन्न होने वाला जीव सर्व प्रथम उस मिश्रण का आहार कर शरीर बनाता है / (3) आने वाला जीव भावेन्द्रिय पाँचों साथ लेकर आता है, द्रव्येन्द्रिय से रहित आकर जन्मता है। (4) तेजस कार्मण की अपेक्षा सशरीरी जन्मता है,
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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