________________ आगम निबंधमाला स्थिर हो जाते हैं, समाधान पाने से या उक्त श्रद्धा वाक्य स्मरण से वंचित रह जाते हैं, वे संयम एवं समकित से च्युत होकर विराधक हो जाते हैं / अतः श्रमण निग्रंथों को तत्त्व ज्ञान अनुप्रेक्षा करते हुए भी श्रद्धा में सावधान रहना चाहिये और उक्त अमोघ श्रद्धा रक्षक वाक्य को मानस में सदा उपस्थित रखना चाहिये। . संदेह उत्पत्ति के कुछ निमित्त कारण ये हैं- 1. ज्ञान की विभिन्नताएँ 2. दर्शन की विभिन्नताएँ . 3. आचरणों की विभिन्नताएँ 4. लिंग वेशभूषाओं की विभिन्नताएँ 5. सिद्धांतो की विभिन्नताएँ 6. धर्म प्रवर्तकों की विभिन्नताएँ / इसी तरह 7. कल्पों 8. मार्गों 9. मतमतांतरों 10. भंगो ११.नयों १२.नियमों एवं 13. प्रमाणों की विभिन्नताएँ / व्यवहार में विभिन्न जीवों की ये विभिन्नताओं और भंगों तथा नयों की विभिन्नताओं को देखकर समझ नहीं सकने से अथवा निर्णय नहीं कर पाने से कुतूहल, आश्चर्य और संदेहशील होकर श्रमण-निग्रंथ कांक्षा मोहनीय के शिकार बन सकते हैं / अत: गुरु अपने शिष्यों को पहले से ही विविध बोध के द्वारा सशक्त बनावे ताकि वे इन स्थितियों के शिकार बन कर अपनी सुरक्षा को खतरे में डालने वाले न बने / परंतु ज्ञान के अमोघ शस्त्र से सदा अजेय बनकर अपने संयम और सम्यक्त्व की सुरक्षा करने में सक्षम रहे / प्रत्येक शिष्यों साधकों को भी चाहिये कि वे पहले स्वयं इस प्रकार के अजेय और सुरक्षित बनने का प्रयत्न करें एवं अश्रद्धाजन्य प्रत्येक परिस्थिति में श्रद्धा के अमोघ शस्त्र रूप वाक्य को मस्तिक में सदा तैयार रखे कि भगवद् भाषित तत्त्व तो सत्य ही है, उसमें शंका करने योग्य किंचित् भी नहीं है। निबंध-१०१ सूक्ष्म स्नेहकाय और मस्तक ढांकना अनुप्रेक्षा ऊँचे नीचे तिरछे सदा निरंतर सूक्ष्म स्नेहकाय गिरती है / मूलपाठ में सूक्ष्म और स्नेहकाय शब्द है ये दोनों ही महत्त्व के हैं। इसके बाद कहा है कि जिस तरह बादर अंकाय की वर्षा बूंदें / 194