________________ आगम निबंधमाला कर्तव्य पालन करने से 1544-60 भेद होते है। औपचारिक विनय के 7 प्रकार- (1) अभ्यासन- वैयावृत्य योग्य गुरु आदि के पास बैठना। (2) छंदानुवर्तन- उनके अभिप्राय के अनुसार कार्य करना / (3) कृत प्रतिकृति- प्रसन्न आचार्य मुझे सूत्रज्ञान देंगे ऐसे भाव से उनको आहारादि देना। (4) कारित निमित्तकरण- शास्त्र ज्ञान मिलने से शिक्षा देनेवाले का विशेष रूप से विनय करना / (5) दु:ख से पीडित जनों को खोजकर उनके दुःखों को जानना / (6) देश काल को जानकर उनकी अनुकूल सेवा करना / (7) रोगी को उसके स्वास्थ्य के अनुकूल अनुमति-आज्ञा देना। आचार्यादि की सेवा के 14 प्रकार-(१-५) पाँच प्रकार के आचार्य होते हैं, यथा- प्रव्राजनाचार्य, उपस्थापनाचार्य, उद्देशनाचार्य, वाचनाचार्य, धर्माचार्य। इन पाँच के सिवाय (6-14) उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, कुल, गण, संघ, साधु और अन्य समनोज्ञ सुसाधु की सेवा करने से वैयावच्च के 14 भेद होते हैं / इस तरह क्रमशः शुश्रूषा-विनय के 10 भेद, तीर्थंकर आदि के अनाशातनादि के 60 भेद, औपचारिक विनय के 7 भेद और आचार्य आदि की वैयावच्च के 14 भेद; इन सभी को मिलाने पर(१०+६०+७ +14=91) एकानवें भेद होते हैं / निबंध-९८ शास्त्रों के प्रारंभिक अंतिम मंगलपाठों की विचारणा . * अंग आगमों का निरीक्षण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि गणधर भगवंतों को आगम के प्रारंभ में या आगम के आदि, अंत, मध्य में मंगल करने की आवश्यकता नहीं होती है / तदनुसार प्रथम अंग आचारांग सूत्र के प्रारंभ में भी कोई मंगल पाठ नहीं है और न ही उसमें आदि, मध्य, अंत मंगल की प्रथा रखी है / उसी प्रकार इस भगवती सूत्र के सिवाय 10 ही अंगशास्त्रों में सीधा आगम विषय ही प्रारंभ हो जाता है। अतः अनुभव सिद्ध तथ्य है कि यह भगवती सूत्र विशाल [189