________________ आगम निबंधमाला . सामान्यतया 'सोही उज्जुय भूयस्स' शुद्धि सरल आत्मा की होती है और शुद्धात्मा में धर्म टिकता है, अत: चर्चाविवाद में जो अपनी पहुँच नहीं हो तो सरलता के साथ धर्म भावों की एवं त्याग-तप की वृद्धि करना ही कल्याण का मार्ग है। अतः सामान्य जन के लिये विवाद में पडे बिना शांत-प्रशांत भावों से हृदय की पवित्रता से संवत्सरी पर्व की आराधना करने में संयोग अनुसार प्रवृत्त रहना चाहिये। निबंध-९७ विनय वैयावच्च के 91 प्रकार यहाँ 91 वें समवाय म इस विषय में निरूपण किया गया है। जिसमें 'पर' अर्थात् अन्य के लिये सेवा या सुख रूप जो कर्म-कर्तव्य पालन रूप पडिमा-विशिष्ट आचार है उन्हें 'पर वैयावृत्य कर्म प्रतिज्ञा' इस वाक्य से कहा गया है। इनकी संख्या 91 कही गई है। जिसमें अन्य के लिये किया गया सद्व्यवहार, सन्मान, विनय व्यवहार एवं सेवा शुश्रूषा का समावेश है, उन 91 की गणना इस प्रकार हैशुश्रूषा विनय के 10 प्रकार- (1) ज्ञान, दर्शन, चारित्र यो रत्नत्रय की अपेक्षा रत्नाधिक पुरुषों का सन्मान सत्कार करना। (2) उनके आने पर खडे होना / (3) वस्त्रादि देकर सन्मान करना / (4) आसन लाकर उसे बैठने के लिए कहना / (5) आसन का अनुप्रदान करना- उनके आसन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना / 6) कृतिकर्म करना अर्थात् सविधि वंदन करना / (7) अंजलि करना / (8) गुरुजनों के आने पर उनके सामने जाकर स्वागत करना / (9) गुरुजनों के जाने पर थोडा उनके पीछे चलना। (10) वे बैठे उसके बाद बैठना / ये दस प्रकार के शुश्रूषा विनय है। महापुरुषों के विनय संबंधी 60 प्रकार-(१) तीर्थंकर (2) केवली प्रज्ञप्त धर्म (3) आचार्य (4) उपाध्याय (5) स्थविर (6) कुल (7) गण (8) संघ (9) सांभोगिक श्रमण (10) आचारवान (11-12) विशिष्ट मति-श्रुत ज्ञानी (13) अवधिज्ञानी (14) मनःपर्यवज्ञानी (15) केवल ज्ञानी / इन 15 महापुरुषों के लिय 1. आशातना नहीं करना 2. भक्ति करना 3. बहुमान करना और 4. वर्णवाद (गुणगान करना) ये चार 288