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________________ आगम निबंधमाला स्पष्ट लिखित 70 दिन की उपेक्षा करना भी योग्य नहीं है / प्रश्न- जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में 50 वें दिन संवत्सरी करना कहा है ? उत्तर-उस सूत्र में संवत्सरी संबंधी एक भी वाक्य नहीं है / उत्सर्पिणी काल के वर्णन में प्रथम तीर्थंकर के जन्म से हजारों वर्ष पहले कुछ मांसाहारी मानव वनस्पतियों को विकसित सुलभ देखकर परस्पर मिलकर मांसाहार नहीं करने की मर्यादा बांधेंगे, ऐसा वर्णन है। उस समय प्रथम तीर्थंकर का शासन भी चालु नहीं हुआ होगा, साधु-साध्वी भी कोई नहीं होंगे। तब संवत्सरी का तो वहाँ प्रसंग भी नहीं है / तो भी लोग आग्रह में पडी बात के लिये ज़्यों त्यों करके कुछ भी लगा देने का श्रम करते है, किंतु- “मिल गया चाबुक का तोडा, घटे फिर लगाम और घोडा' वाली कहावत चरितार्थ करते हैं / अत: जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति की बाततो उक्तकहावतके समान नासमझी की होती है। श्रावक-साधुपन भी नहीं है तो संवत्सरी का वहाँ कोई अर्थ नहीं है। सार यह है कि संवत्सरी संबंधी कुछ स्पष्ट कथन निशीथ सूत्र के उन्नीसवें उद्देशक में है और उसी की व्याख्या में भादवा सुदी पंचमी कही है। परंपरा भी जिसकी साक्षी है तथा कालकाचार्य की जो घटना प्रचलित है उसमें उन्होंने भी राजा को अपनी संवत्सरी मनाने के कथन में भादवा सुदी पंचमी का ही निरूपण किया था। फिर राजा के आग्रह से एक दिन पहले भादवा सुदी चौथ को परिस्थितिवश राजाज्ञा से उस राजधानी के चातुर्मास के लिये ही की थी। यह वर्णन भी ग्रंथों में है। इससे भी भादवा सुदी पंचमी की प्राचीनता एवं महत्ता सिद्ध होती है। इस घटना में भी अधिकमास संबंधी या तिथि घट-वध संबंधी या प्रतिक्रमण के समय के घडी पल संबंधी कोई चर्चा विचारणा नहीं है। अत: लौकिक पंचांग में लिखी भादवा सुदी पंचमी (ऋषिपंचमी) तर्कविना स्वीकार कर संवत्सरी पर्व मनाना श्रेयस्कर होता है। आगम काल से जिस निश्चित तिथि का नामोल्लेख प्राप्त हो रहा है, उससे अन्य कोई भी तिथि को अर्थात् पहले या पीछे) संवत्सरी करने पर उस निशीथ सूत्र के पाठ से प्रायश्चित्त आता है। फिर भले अपने गुरु या परंपरा के नाम से या बहुमति के नाम से कोई कभी भी करके सच्चाई का संतोष माने तो वह स्पष्ट ही आगम भावों की उपेक्षा और आत्मवंचना बनती है। यह सिद्धांत की बात है। 187
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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