________________ आगम निबंधमाला अति विशाल शास्त्र है, इसका लेखन निर्विघ्न पूर्ण होवे उसके लिये यदा-कदा लेखन काल में शास्त्र लिपिकों ने इस भगवती सूत्र के प्रारंभ में विविध मंगल सूत्र, मंगल शब्द लगाये हैं जो प्राचीन टीकाकार श्री अभयदेव सूरि के पूर्व लग चुके थे / क्यों कि उनकी टीका में उन मंगल सूत्र पाठों की विवेचना हुई है। .. इस भगवती सूत्र के अंत में भी मंगल रूप प्रशस्ती आदि है वे भी टीकाकार के सामने रही है किंतु वहाँ टीकाकार ने उन अंतिम मंगल रूप प्रशस्तियों को लहियों की है ऐसा कहकर व्याख्या नहीं की है परंतु प्रारंभ में उन्हें यह स्मृति या आभास नहीं हुआ इसका कारण छद्मस्थता है / प्रस्तुत आगम गणधरकृत है। उन्हें शास्त्र को लिपिबद्ध करना ही नहीं था तो वे ब्राह्मी लिपि को नमस्कार क्यों करे ? वहीं पर श्रुतदेवता को भी नमस्कार किया गया है। व्याख्या में श्रुतदेवता गणधरो . को ही स्वीकारा गया है / तो गणधर आगम की रचना करने वाले हैं वे खुद को नमस्कार क्यों करेंगे ? इस प्रकार मंगलपाठ लहियों के रखे हुए सिद्ध होते हैं / इसीकारण ये मंगल पाठ प्रतियों में भिन्न भिन्न रूप में मिलते हैं / हस्तलिखित प्रतों में एवं प्रकाशित प्रतियो में इन मंगल पाठों में एकरूपता नहीं है / कई प्रतियों मे ब्राह्मी लिपि को नमस्कार रूप एक पद है / किन्ही प्रतियों में ब्राह्मी लिपि और श्रुत को नमस्कार रूप दो पद हैं तथा किन्ही प्रतों में तीसरा पद श्रुत देवता को नमस्कार रूप है / किन्ही प्रतियों में ये 1,2 या तीनों पद नमस्कार मंत्र से पहले हैं फिर नमस्कार मंत्र है / किन्ही प्रतों में पंच परमेष्टी नमस्कार मंत्र पहले है बाद में ये 1, 2 या 3 मंगलपाठ हैं। . इस प्रकार की विविधता से भी यह स्पष्ट होता है कि शास्त्रलेखन कर्ताओं ने अपनी रुचि अनुसार ये आदि नमस्कार पद लिखकर फिर . शास्त्र का प्रारंभ किया है / इस विचारणा को ध्यान में रखते हुए पंच परमेष्टी नमस्कार .. के पाँच पद भी इस शास्त्र के प्रारंभ में जो उपलब्ध हैं वे भी यहाँ .... गणधर कृत न होकर लेखनकाल के ही सिद्ध होते हैं / क्यों किः .. [ 120