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________________ आगम निबंधमाला भुला देना, देखा अनदेखा, सुना अनसुना, जाना अनजाना कर देना, यह उपेक्षा संयम है। (१३)अपहृत्य संयम-वस्तु का ग्रहण धारण और परित्याग विवेकपूर्वक करना अर्थात् चौथी-पाँचवीं समिति का सम्यग् पालन करना, यह अपहृत्य संयम कहा गया है / (14) प्रमार्जना संयम- पात्रों को उपयोग में लेते समय उनका प्रतिलेखन, प्रमार्जन करना, रात्रि में बैठना, चलना, सोना हो तब भूमि, आसन का प्रमार्जन करना एवं कोई भी उपकरण रात्रि में पूँजकर काम में लेना तथा सोने के समय शरीर का प्रमार्जन करना, यह प्रमार्जना संयम है। (15-17) मन को शुभ रखना, अशुभ में न जाने देना / वचन से हित-मित-असावद्य वचन बोलना या अल्पभाषी होना। काया की प्रवृति यतना से एवं विवेकपूर्वक करना, सावद्य एवं अयतनाकारी प्रवृत्ति नहीं करना। यह मन संयम वचन संयम और काय संयम है / इस तरह यह 17 प्रकार का संयम है / इसके विपरीत आचरण को ही 17 प्रकार का असंयम समझ लेना चाहिये / निबंध-९१ सत्तावीस अणगार गुण (1-14) पाँच महाव्रत पालन, पाँच इन्द्रिय निग्रह, चार कषाय त्याग। (15-17) भावसत्य, करणसत्य, योगसत्य अर्थात् इन तीनों को निष्पाप असावध रखना। (18-19) क्षमावंत तथा वैराग्यवंत रहना अर्थात् वैराग्यभावों को सदा ताजे रखना / (20-22) मन, वचन और काया का सम्यक रूप से अवधारण-उपयोग करना।असम्यकमन वचन काया का त्याग करना / (23-25) ज्ञान, दर्शन, चारित्र से संपन्न रहना अर्थात् अध्ययन, अनुभव, अभ्यास से रत्नत्रय का विकास करना / (26) असाता वेदना को सम्यक् सहन करना, समभाव रखना, विषमभाव नहीं करना / कष्ट के समय में भी प्रसन्न रहना, यह वेदना सहनशीलता गुण है। (27) मरण समय में भी कष्ट आपत्ति में परिपूर्ण सहनशील.रहना, वह मारणांतिक वेदना सहनशीलता गुण है अर्थात् मारणांतिक कष्ट | 181J
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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